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३३ : विद्याध्ययन क्यों
विद्यार्थी-वर्ग मेरा अत्यंत रुचिकर कार्यक्षेत्र है। छात्र-छात्राओं की परिषद में अपने विचार व्यक्त करने में मुझे सहज प्रसन्नता की अनुभूति होती है। बंगाल प्रांत में प्रवेश करने के पश्चात कॉलेज के छात्र-छात्राओं के बीच बोलने का आज यह प्रथम ही अवसर उपस्थित हुआ है। शिक्षा का महत्त्व
विद्यार्थी यह बात समझें कि शिक्षा जीवन का अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है। भगवान महावीर ने रूपक की भाषा में कहा कि जैसे सूत्र में पिरोई हुई सूई खोती नहीं, उसी प्रकार सूत्र अर्थात सत्शिक्षा में पिरोया हुआ जीवन संसार में ध्वस्त नहीं होता। इस एक बात से ही विद्यार्थी जीवन में शिक्षा का महत्त्व अच्छी तरह से समझ सकते हैं। समझने का फलित यह होना चाहिए कि वे शिक्षा की प्राप्ति के लिए सर्वात्मना समर्पित हो जाएं। कैसा हो विद्यार्थी का जीवन
उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है-वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवहाणवं। अर्थात विद्यार्थी को गुरु की सन्निधि में निवास करना चाहिए तथा तपमय एवं संयममय जीवन व्यतीत करना चाहिए। गुरु-सन्निधि का बड़ा महत्त्व है। उनके पास रहकर जो ज्ञान हासिल किया जा सकता है, वह पुस्तकों से नहीं प्राप्त किया जा सकता। उनका जीवन, जीवन का हर व्यवहार और आचारण अपने-आपमें एक सक्रिय प्रशिक्षण होता है। प्राचीनकाल में विद्यार्थी वर्षों तक गुरुकुल में गुरु-सन्निधि में रहकर विद्याभ्यास करते थे। गुरुकुल के गुरु तपस्या का जीवन जीते थे, संयममय जीवन जीते थे। इसलिए विद्यार्थियों को भी उनके जीवन से वैसी ही प्रेरणा मिलती थी। परिणामतः वे भी तप-संयममय जीवन व्यतीत करते, योगी का जीवन जीते। इंद्रिय-निग्रह, वाक्संयम, खाद्य-संयम, विद्याध्ययन क्यों
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