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सोया मन जग जाए करोड़पति बसते हैं तो फिर मेरी विशेषता ही क्या? मन की मांग विस्तार पाती गई। अन्त में सोचा, राजा सबसे बड़ा है। क्यों न मैं राज्य मांगकर राजा बन जाऊं। फिर मेरे से बड़ा कोई नहीं होगा। यह राजा भी मेरा किंकर बन जाएगा। ___ भोग की शक्ति विस्तार के लिए चलती है। विस्तृत होते-होते वह सबको अपने में समेट लेना चाहती है। यह सभी कलहों की जननी है। इसके निवारण का एकमात्र उपाय है त्याग। भोग के समक्ष त्याग को लाकर खड़ा करो तो सारे कलह समाप्त हो जाते हैं। अब हम उल्टे चलें। चिन्तन का भेद कलह उत्पन्न करता है, चिन्तन का त्याग कलह को शांत करता है। रुचिभेद कलह पैदा करता है। रुचिभेद का संवरण कलह को समाप्त करता है। आग्रह कलह पैदा करता है
और अनाग्रह कलह को समाप्त करता है। स्वार्थ कलह पैदा करता है और स्वार्थ-त्याग प्रेम बढ़ाता है, कलह को मिटाता है। अज्ञान कलह बढ़ाता है और यथार्थ का ज्ञान उसका उपशमन करता है। दोनों शक्तियां त्यागशक्ति और भोगशक्ति—अपना-अपना काम करती हैं। इन दोनों का ठीक विश्लेषण करें। भोग के प्रतिपक्ष में त्याग, अज्ञान के प्रतिपक्ष में ज्ञान, आग्रह के प्रतिपक्ष में अनाग्रह और स्वार्थ के प्रतिपक्ष में अस्वार्थ रहे तो कलह का समाधान हो सकता
प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति यह ठीक से समझे कि श्वास प्रेक्षा, शरीर प्रेक्षा, चैतन्य-केन्द्र प्रेक्षा, कायोत्सर्ग, शिथिलीकरण अथवा अन्यान्य सभी प्रयोग त्याग को बढ़ाने के लिए, संयम को वृद्धिंगत करने के लिए किए जा रहे हैं। यदि यह बात पूर्ण रूप से हृदयंगम हो जाती है तो प्रेक्षाध्यान की सार्थकता है और यदि इन सारे प्रयोगों को भोग की वृद्धि के साधनमात्र समझ कर करते हैं तो प्रेक्षाध्यान की व्यर्थता है। साधक को स्वयं निर्णय लेना होगा कि उसे इन शिविरों से क्या पाना है क्या लेना है?
भिखारी एक घर पर रुका और बोला—'बाबूजी! रोटी चाहिए।' भीतर से उत्तर आया- 'बीबी घर में नहीं है।' भिखारी बोला—'मुझे बीबी नहीं चाहिए, रोटी चाहिए।'
त्याग की चेतना जागे बिना अध्यात्म का विकास नहीं हो सकता और अध्यात्म के विकास के बिना ध्यान की सार्थकता कम हो जाती है। ध्यान वही कर सकता है जिसमें अध्यात्म की चेतना जाग जाती है। अध्यात्म की चेतना उसी में जागृत होती है जिसमें त्याग की चेतना जागती है।
प्रश्न है कि अध्यात्मवादी कौन और भौतिकवादी कौन? इनके अनेक अर्थ
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