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सोया मन जग जाए
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समय तक न बोलना या मौन रहना, यह कोई सार्थक बात नहीं है । हमें मौन के प्रयोग को बदलना चाहिए। तपस्या का प्रयोग, मौन का प्रयोग, मनोगुप्ति और वाकगुप्ति का प्रयोग — सब महत्त्वपूर्ण प्रयोग हैं। सारे प्रयोग शान्त सहवास से सुरक्षित होते हैं । ये सारे प्रयोग शांतिपूर्ण सह-अस्तित्त्व, शांन्तिपूर्ण जीवन को बढ़ाने वाले होते हैं तब तो इनकी संपूर्ण सार्थकता है, अन्यथा इनका फलित सीमित हो जाता है। जीवन में निरन्तर अशांति रहे, संघर्ष रहे और व्यक्ति ध्यान भी करता जाए, मनोगुप्ति और वचनगुप्ति भी करे, मौन भी करे तो क्या प्रयोजन ? उनका फलित क्या होगा? ऐसी स्थिति में इन प्रयोगों का अर्थ भी कम हो जाता है ।
कलह का चौथा कारण है – स्वार्थवृत्ति। जहां स्वार्थ टकराता है वहां कलह पैदा हो जाता है। मौन से इसको टाला जा सकता है । जब स्वार्थ टकराए, तत्काल मौन कर लेने पर संघर्ष की स्थिति टल जाती है । या तो यह स्थिति स्वार्थ को त्यागने से टलती है या मौन से टलती है । स्वार्थ के टकराने के समय जीभर कर बोला, गालियां दीं। ऊटपटांग बकवास किया और चार बजे कहता है, मेरे मौन का समय है । अब मैं घंटा भर मौन रहूंगा । ऐसी स्थिति में मौन बेचारा शरमा जाता है । स्वार्थ के टकराहट का प्रसंग मौन करने का उत्तम काल है ।
कलह का पांचवां कारण है— सचाई का ज्ञान होना, यथार्थ की जानकारी रहना । सचाई को न जानने के कारण गलतफहमी रहती है और इससे कलह उभर आता है । जब सचाई की यथार्थ जानकारी होती है तब कलह स्वयं समाप्त हो जाता है। सही घटना या स्थिति को न जानना कलह का बहुत बड़ा कारण है । जयों ही वस्तुस्थिति की यथार्थता सामने आती है, एक मिनिट में कलह समाप्त हो जाता है, अनुताप शेष रहता है कि अरे ! मुझे तो यह ज्ञात ही नहीं था ।
एक राजा था। उसकी रानी प्रव्रजित हो गई, साध्वी बन गई। उसके दो पुत्र । एक राज्य का संचालन कर रहा था और दूसरा चांडाल के घर रह रहा था । चांडाल के घर जो पला वह शक्तिशाली हो गया और उसने सैनिकों को जुटा भाई के राज्य पर आक्रमण कर डाला। पर दोनों एक दूसरे से अनजान थे। रणभेरी बज उठी। साध्वी को पता चला। उसे यथार्थ स्थिति ज्ञात थी । उसने सोचा, युद्ध यदि हुआ तो अनर्थ हो जाएगा। हजारों निरपराध सैनिक मारे जाएंगे और न जाने कौन जीतेगा कौन हारेगा? कौन भाई मरेगा, कौन जीएगा ? साध्वी रणांगण में आई । एक खेमे में जाकर कहा — जिससे तू
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