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________________ 92 सोया मन जग जाए किया। वे बोले, हम आपके लिए प्राण देने के लिए तैयार हैं । हम मरेंगे, लड़ेंगे और उनको परास्त कर देंगे । युद्ध हुआ । सामन्त पराजित हो गए । उनको मौत दीखने लगी । सम्राट् ने दूसरे तरीके से सोचा । उसने सभी बागी सामन्तों को बुलाया और कहा- मैं जानता हूं कि बच्चा तभी रोता है जब वह भूखा-प्यासा होता है। तुम्हें भी कोई न कोई कष्ट है, इसलिए बगावत की है। यदि तुम्हें कोई पीड़ा नहीं होती तो कभी बगावत नहीं करते, यह मैं समझता हूं। मैं अब तुम सबकी सेवा करने के लिए तैयार हूं। जो चाहो मांगो । सारे सामन्त आवाक् रह गए। उनके सिर झुक गए। सम्राट् ने उन्हें क्षमादान दिया। वे चले गए । प्रधानमंत्री ने सम्राट् से कहा- यह आपने क्या किया? आपने तो कहा था कि शत्रुओं को कुचल दूंगा । आपने तो किसी को कुचला ही नहीं, सबको मुक्त कर दिया। आपको चाहिए था कि शत्रुओं का अंत कर देते । सम्राट् ने कहा, शत्रु कोई बचा ही नहीं, किसको कुचलूं । सम्राट् के विनोदी स्वभाव ने सारी स्थिति में परिवर्तन कर दिया । शत्रु मित्र हो गए। सारा राज्य निष्कंटक हो गया । वर्तमान की घटना है। उस समय लोकसभा के अध्यक्ष थे गुरुदयालसिंह ढिल्लो । संसद चल रही थी। एक सदस्य ने प्रश्न उठाते हुए कहा –—–— अध्यक्ष महोदय ! अमुक पत्र ने लोकसभा की अवमानना की है। जहां अध्यक्ष महोदय का फोटो छापना था वहां ब्रिगेडियर ढिल्लो का फोटो छाप दिया। सभी सदस्य बोल उठे, यह अपराध है ढिल्लो ने हंसते हुए कहा — इस पर तो मेरी पत्नी को आपत्ति होनी चाहिए थी, माननीय सदस्यों को क्यों आपत्ति हो ? इतना कहते ही सारा वातावरण हास्यरस में बदल गया। सभी शांत हो गए। 1 हमने क्रोध के उपशमन और उदात्तीकरण के कुछेक उपायों की चर्चा की । प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा का प्रयोग, सम्यक् चिन्तन, दायित्व की अनुभूति, विनोदी स्वभाव — ये ऐसे कारण हैं जिनसे क्रोध का उपशमन और उदात्तीकरण होता है। क्रोध का संपूर्ण विलयन या क्षय होना तो बहुत दूर की बात है, वीतराग अवस्था में प्राप्त होने वाला परिणाम है, किन्तु हम क्रोध को विफल करने और उसका उदात्तीकरण करने का मार्ग हस्तगत कर लें। यह परिष्कार का मार्ग है। धीमे-धीमे परिष्कार होता जाएगा और तब क्रोध की तीव्रता और सीमा घटती चली जाएगी। उसकी काल अवधि भी सिकुड़ जाएगी । उसको उद्दीपन की सामग्री मिलने पर भी वह उद्दीप्त नहीं होगा। यदि इतना होता है तो मैं समझता हूं कि हमने अपनी मंजिल का एक पड़ाव पार कर लिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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