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________________ 91 उदात्तीकरण क्रोध का १. अनन्तानुबंधी—क्रोध, मान, माया, लोभ । २. अप्रत्याख्यान-क्रोध, मान, माया, लोभ । ३. प्रत्याख्यान-क्रोध, मान, माया, लोभ । ४. संज्वलन—क्रोध, मान, माया लोभ । हमने क्रोध आदि के आन्तरिक परिमाणों की चर्चा की। उसके बाह्य परिमाण है संघर्ष, कलह, गालीगलौज, मारपीट, घर में नरक का-सा वातावरण पैदा कर डालना, आदि-आदि। क्रोध जीवन का अभिशाप है। उसको नियंत्रित करने का अभ्यास अत्यन्त आवश्यक है। कुछेक व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो पूरी बात को सुने या समझे बिना ही क्रोध में आ जाते हैं। उनमें इतना धैर्य भी नहीं है कि शांतचित्त से बात को सुन सकें, सोच-विचार सकें। यह स्थिति अत्यन्त खतरनाक है। अभ्यास के द्वारा क्रोध पर नियंत्रण किया जा सकता है। अभ्यास के दो सूत्र है। एक है प्रेक्षा का और दूसरा है अनुप्रेक्षा का। क्रोध के उत्पन्न होने का केन्द्र हमारे मस्तिष्क में है। हाथ उठता है, पर क्रोध हाथ से पैदा नहीं होता। लात उठती है, पर क्रोध लात से पैदा नहीं होता। क्रोध पैदा होता है मस्तिष्क में। इसलिए मस्तिष्क के अमुक केन्द्र पर ध्यान एकाग्र करने से क्रोध शांत हो सकता है। ज्योतिकेन्द्र और शांतिकेन्द्र पर ध्यान करने से क्रोध के उपशमन में बहुत बड़ी सफलता मिल सकती है। क्रोध को शांत करने का तीसरा उपाय है सम्यक् चिन्तन, सही सोचना। व्यक्ति को प्रत्येक परिस्थिति में समग्रता से सोचना चाहिए कि मैं कौन हूं? मैं अभी किस स्थान पर हूं? मेरा क्या दायित्व है? मुझे क्या करना है? जो समग्रता से सोचता है वह सहसा क्रोध में नहीं आता। वह क्रोध को विफल करने की दिशा में प्रस्थित होता है। क्रोध को विफल करने के अनेक हेतु हैं। उनमें एक हेतु है—विनोदप्रियता, विनोद की प्रकृति। विनोद तीव्रतम क्रोध को भी विफल बना डालता है। वह आग में पानी का काम करता है। आग बुझ जाती है। जिसने विनोद का अभ्यास किया है, जिसने अपनी प्रकृति को उस रूप में ढाला है, वह क्रोध का उपशमन कर सकता है और शांत-प्रशांत रह सकता है। क्रोध के उपशमन के और-और उपयों में यह महत्त्वपूर्ण और सशक्त उपाय है। चीन देश की बात है। एक बार सामन्तों ने सोचा, हम बगावत कर सत्ता को क्यों ने हथिया लें। सभी बागी एकत्रित हुए और राजधानी पर आक्रमण कर डाला। चीन के सम्राट को पता चला। उसने अपने सैनिकों को एकत्रित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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