________________
सोया मन जग जाए
की रेखा समाप्त। तीव्रता कम हो गई, मंदता आ गई। चौथी है पानी की रेखा। पानी पर रेखा खींची और समाप्त, खींची और समाप्त । वह क्षण भर के लिए भी नहीं टिकती। उसका टिकाउपन नहीं है। वह स्थायी नहीं होती। क्रोध आया और गया, आया और गया। कोई स्थायित्व नहीं होता। ___ क्रोध की तीव्रता और मंदता के आधार पर मुनष्य के चार प्रकार बन जाते
१. उत्तम पुरुष क्षणस्थायी क्रोध। २. मध्यम पुरुष-क्रोध की अधिकतम अवधि दो प्रहर। ३. अधम पुरुष-क्रोध की अवधि एक दिन-रात। ४. अधमाधम पुरुष-क्रोध की अवधि जीवन पर्यन्त।
उत्तम पुरुष का क्रोध कभी टिकता नहीं। आचार्य प्रचर बहुत बार कहते हैं, काम उचित ढंग से न होने पर क्षणभर के लिए आवेश आ जाता है। दूसरा समझ लेता है कि आचार्य श्री ने गांठ बांध ली है, अकृपा हो गई है। कभी कोई पूछता है तो मैं कहता हूं, आवेश आया तब आया। दूसरे ही क्षण में उसे भुला देता हूं। क्रोध रहेगा तो काम कैसे चलेगा?
सच है, उत्तम आदमी का क्रोध क्षणभर का होता है। आया और गया, आया और गया। मध्यम आदमी बात को शीघ्र ही मन से निकाल नहीं पाता। कुछ समय लगता है। दो-चार घंटों में वह स्वभावस्थ हो जाता है। घटना को भुला देता है। अधम व्यक्ति बात को घोलता रहता है। उसे भुला नहीं पाता। वह सोचता है, एक बार टूटा सो टूट ही गया। अब जुड़ने की बात व्यर्थ है। वह निषेधात्मक भावों में बह जाता है। लंबे समय तक यह स्थिति बनी रहती है। अधमाधम व्यक्ति के मन की गांठ इतनी घुल जाती है कि वह जीवनभर खुलती ही नहीं। वह रेशम की ग्रन्थि बन जाती है।
मात्रा, काल, तीव्रता और मंदता की दृष्टि से हमने क्रोध पर विचार किया। तीव्रता और मंदता का बाह्य और आन्तरिक परिमाण भी होता है।
आन्तरिक परिमाण यह है१. तीव्रतम क्रोध-मिथ्या दृष्टिकोण की प्रबलता। सम्यक्त्व का अलाभ २. तीव्र क्रोध देशव्रत—आंशिक व्रत की अप्राप्ति। ३. मंद क्रोध महाव्रत या संयमी जीवन का अभिघात । ४. मंदतर क्रोध यथाख्यातचरित्र –उत्कृष्ट चारित्र की अप्राप्ति । क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय हैं। इनकी तीव्रतम आदि चार अवस्थाओं को पारिभाषिक शब्दों में इस प्रकार अभिव्यक्ति मिलती है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org