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________________ युद्ध : अहंकार के साथ साथ भी लड़ना पड़ेगा और ममकार के साथ लड़ना है तो अहंकार के साथ भी लड़ना पड़ेगा। दोनों के साथ युद्ध करना होगा। प्रश्न है कि अहंकार समस्या पैदा क्यों कर रहा है? इसका उत्तर है, वह समस्या इसलिए पैदा कर रहा है कि हम सचाइयों को झुठलाते जा रहे हैं। शक्ति पर हमें भरोसा है, पर इस सचाई को हम भूल जाते हैं कि शक्ति की भी एक सीमा है। हमें अपने जीवन पर और आयु पर भरोसा है, पर हम भुला देते हैं कि जीवन और आयु की भी एक सीमा है। सफलता पर अहं आता है। इस सचाई को झुठला देते हैं कि सफलता के साथ विफलताएं भी जुड़ी हुई होती हैं। सफलता और असफलता जुड़ी हुई है। इन सभी सचाइयों को झुठलाने के कारण अहंकार निरंकुश हो जाता है। हमें अहंकार से लड़ना है। उसका मुख्य अस्त्र होगा सचाई का बोध, सत्य का ज्ञान और स्वीकार। हम अपनी शक्ति की सीमा को समझें, सफलता और आयु की सीमा को समझें। इतना समझ लेने पर विजय हमारी होगी, अहंकार परास्त हो जाएगा। चक्रवर्ती भरत बहुत शक्तिशाली था। हर शक्ति की सीमा होती है। उसमें तारतम्य होता है। तारतम्य का अवबोध न होना अहंकार को बढ़ाना है। जब तारतम्य का बोध हो जाता है तब अहंकार विलीन हो जाता है। भरत चक्रवर्ती ने मान लिया कि मेरे से अधिक शक्तिशाली कोई है नहीं। मैं चक्रवर्ती हूं। भरत में शक्ति की सीमा और तारतम्य का ज्ञान नहीं रहा। उसका अहं बढ़ा। उसने अपने छोटे भाई बाहुबली के साथ युद्ध किया। बड़ा भाई हार गया। छोटा भाई विजयी हुआ। पराजय भरत की नहीं, उसके अहंकार की हुई। यह अज्ञान की पराजय और तारतम्य के अबोध की पराजय थी। यदि भरत जान लेता कि संसार बड़ा है। मेरे से अधिक शक्ति-संपन्न भी कोई व्यक्ति हो सकता है, तो आज उसे हार का मुंह नहीं देखना पड़ता। ___ सफलता की भी एक सीमा होती है। उसमें भी तारतम्य होता है। हर आदमी को समानरूप से सफलता नहीं मिलती। एक आदमी अपने काम में एक वर्ष में ही सफल हो जाता है और दूसरा आदमी दस वर्ष तक खपता है, तपता है, फिर भी सफल नहीं होता। एक ही आदमी कभी सफल भी होता है तो कभी विफल भी होता है। जो आदमी इस अहं में रहता है कि मैं जहां भी हाथ डालूंगा, मुझे सोना ही सोना मिलेगा तो वह अहंकार कभी ऐसी घात करता है कि आदमी फिर कभी संभल ही नहीं पाता। जीवन की भी निश्चित सीमा है। किसी का जीवन असीम नहीं होता। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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