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________________ सोया मन जग जाए जल में थल और थल में जल दीख रहा था। जल था। उसको थल का आभास हुआ। पैर फिसला। गिर पड़ा। कोई बात नहीं थी। सभा में द्रौपदी बैठी थी। उसने दुर्योधन को गिरते देखा। व्यंग्य में वह बोली अन्धे का बेटा अन्धा ही तो होगा। दुर्योधन ने यह सुना। यह वचन तीर की भांति चुभ गया और महाभारत की सृष्टि हो गई। अहं पर चोट लगी और महाभारत बन गया। ___ अहंकार के कारण जीवन में अनगिन समस्याएं पैदा होती हैं। सफलता हर व्यक्ति को, हर काम में नहीं मिलती। जहां व्यक्ति असफल होता है, उसका अहं फुफकार उठता है। अहं पर चोट होती है और तब परिमाणों की लंबी श्रृंखला बन जाती है। इसलिए अहंकार के साथ लड़ना आवश्यक है। लड़ाई उसी के साथ की जाती है, जहां कुछ होता है। जहां कुछ नहीं होता, वहां कैसी लड़ाई! पर कभी-कभी कुछ न होने पर भी लड़ना होता है। अभी कुछ दशकों पहले की घटना है। चीन ने हिन्दुस्तान की भूमि पर आक्रमण किया। भारतीय सेना पीछे हट गई। लोकसभा में पूछा गया कि अक्साई चीन की रक्षा के लिए सैनिकों को क्यों नहीं भेजी गई ? सेना पीछे क्यों रही? नेहरू ने उत्तर देते हुए कहा—'वहां एक ऐसी भूमि है, जहां एक तिनका भी नहीं उगता। वहां की रक्षा के लिए सैनिकों को क्यों मरवाया जाए? महावीर त्यागी सांसद थे। वे तत्काल उठे और अपनी टोपी उतारते हुए बोले—मेरे सिर पर एक भी बाल नहीं है। मैं खल्वाट हूं। तो क्या मैं सिर की रक्षा नहीं करूं? क्या मैं इसको काट कर फेंक दूं? चीज उपयोगी हो या न हो, जब उसको अपना बना लिया, उसके साथ ममत्व और अहं जुड़ गया, उसे कोई भी कटने नहीं देगा। अहंकार का यह परिणाम है कि कुछ जुड़ा और उसके साथ ममत्व आ गया। अहं से ही तो ममत्व होता है। अहं कोरा अहं होता है। उसके साथ कुछ जुड़ा, इसका अर्थ हो गया ममत्व। दोनों साथ-साथ चलते हैं। इनको कभी अलग नहीं किया जा सकता। जहां अहंकार होगा, वहां ममकार भी होगा। जहां ममकार होगा, वहां अहंकार भी होगा। अहंकार ममकार को बढ़ाता है और ममकार अहंकार को बढ़वा देता है। दोनों साथ-साथ जन्मते हैं और साथ-साथ ही मरते हैं। अहंकार मरेगा तो ममकार भी मर जाएगा और ममकार मरेगा तो अहंकार भी मर जाएगा। दोनों की नियति साथ जुड़ी हुई है। कोरे अहंकार या कोरे ममकार को नष्ट नहीं किया जा सकता। यह असंभव बात है। अहंकार के साथ लड़ना है तो ममकार के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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