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युद्ध : अहंकार के साथ
आता है। जहां आकांक्षा और क्षमता का असंतुलन होता है, वहां जटिलताएं पैदा होती हैं। ___ एक साध्वी के मन में आकांक्षा उभरी कि मैं साध्वी-प्रमुखा बनूं। पर उसकी क्षमताएं उतनी नहीं थी कि वह इस गुरुतर पद पर आसीन हो सके। अन्त में उसको अनेक कठिनाइयां सहन करनी पड़ी।
एक साधु के मन में भावना जागी कि मैं संघ का आचार्य बनूं। मेरे में सारी योग्यताएं हैं। उसने अपनी आकांक्षा दूसरे साधु के माध्यम से आचार्य भिक्षु तक पहुंचाई। आचार्य भिक्षु को उसकी पूरी पहचान थी। उन्होंने कहा—अमुक साधु सूरीपद (आचार्यपद) पाने के योग्य तो नहीं है, पर उसे सूरदास पद मिल सकता है।
क्षमता तो नहीं है चक्षष्मान् रहने की, दो आंखों को सुरक्षित रखने की और आकांक्षा है आचार्य बनने की! आचार्य को सहस्रचक्षु होना पड़ता है, हजार आंखों वाला होना पड़ता है। जहां दो आंखों की क्षमता भी पूरी नहीं है, वहां सहस्रचक्षु बनने की बात हास्यास्पद सी लगती है।।
जहां आकांक्षा और क्षमता में संतुलन नहीं होता वहां कुंठा और निराशा का साम्राज्य छा जाता है। कुंठा अकेली नहीं रहती। वह रोगों की श्रृंखला पैदा कर देती है। एक के बाद दूसरा मानसिक रोग व्यक्ति को घेरने लगता है। यह एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु है जहां हमें अहंकार के साथ युद्ध करने की आवश्यकता होती है।
अहंकार क्रोध को उत्पन्न करता है, पर हम यह स्पष्ट समझ लें कि अस्तित्व वाचक अहंकार कभी क्रोध पैदा नहीं करता। वह अहंकार क्रोध पैदा करता है जिसके गर्भ में लोभ है, आकांक्षा है, कुछ पाने की लालसा है। वहां अहंकार पर चोट होती है और क्रोध जाग जाता है। सत्तर-पचहत्तर. प्रतिशत क्रोध का कारण है अहंकार। यदि अहंकार नहीं होता है तो आदमी में क्रोध की मात्रा भी कम हो जाती है। ___ जब हम अहंकार के इन परिणामों को देखते हैं तब उसके साथ युद्ध करने की जरूरत हो जाती है। उसने इतने अनिष्ट परिणाम पैदा किए हैं कि उसके साथ लड़ना अनिवार्य हो गया है। ___ महाभारत के प्रलयंकारी युद्ध का कारण भी अहं ही था। दुर्योधन के अहं पर चोट हुई और महाभारत खड़ा हो गया। पांडवों ने राजसभा का आयोजन किया। राजसभा का प्रांगण स्फटिक का था। वह जल में थल और थल में जल का आभास दे रहा था। उस राजसभा में सभी आमंत्रित थे। दुर्योधन आया। उसे
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