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________________ युद्ध : अहंकार के साथ 79 अहंकार ने सचाइयों को बहुत झुठलाया है । इसीलिए यह बड़ा दोष माना जाता है। सदा यह सचाई को झुठला कर बढ़ता है । समाज में प्रतिष्ठा, सम्मान और बड़प्पन बने, यह अहंकार के साथ जुड़ा हुआ है । ये सारे अहंकार के पालित-पोषित पुत्र हैं। जहां अहंकार है वहां महत्त्वाकांक्षा और बड़प्पन की बात स्वतः पैदा हो जाती है I व्यक्ति अपने अहं के कारण अपने आपको बहुत बड़ा मान लेता है और दूसरों को छोटा मानता है । सचाई को झुठलाने का परिणाम भी बड़ा विचित्र होता है । अरब के रेतीले मैदान में एक अमीर ऊंट पर बैठ कर जा रहा था । उसका नौकर पीछे बैठा था । उसके हाथ में छाता था ताकि अमीर को धूप न लगे । उसके हाथ में पंखी थी ताकि अमीर को पसीना न आए। दोनों मजे से जा रहे थे । कुछ ही दूर गए होंगे कि उनकी दृष्टि पैदल चल रहे एक फकीर पर पड़ी। वह अकेला था, कोई साथी नहीं था । चिलचिलाती धूप में वह पैदल जा रहा था। उसकी चाल में मस्ती थी । अमीर ने उसको देखा । अंहकार जाग उठा । वह बोला —– अरे फकीर ! इतनी तेज धूप में ऐसे ही घूम रहा है, बिना मौत मर जाएगा। फकीर मस्त था । वह बोला-फकीर कभी नहीं मरेगा । मरेगा तो अमीर मरेगा। ऊंट आगे बढ़ गया। फकीर अपनी मस्ती में पीछे-पीछे चलने लगा । कुछ समय बीता। तेज आंधी आई । अमीर और उसका नौकर—दोनों सम्हल नहीं सके। दोनों नीचे गिरे और मर गए। ऊंट भी लड़खड़ाकर गिर पड़ा और मर गया । फकीर निकट आया । पहचान गया । बोला- अरे ! मेरे जैसा ही तो यह आदमी था। पर अमीरी के अहं ने मेरे मित्र को बेमौत मार डाला ! सचमुच अहंकार बेमौत मार डालता है । यह जितनी हत्याएं करता है, एक आतंकवादी भी उतनी हत्याएं नहीं कर पाता । यह प्रतिक्षण मारता रहता है । 'मैं कुछ हूं' यह अहंकार मारने वाला होता है । अध्यात्म के क्षेत्र में जो 'अंह' तारने वाला था, वही 'अहं' स्वयं के साथ जुड़कर मारने वाला बन गया रक्षक भक्षक बन गया । एक लड़का मेरे पास आया। मैंने पूछा- तुम कौन हो ?' वह बोला — मैं प्रदीप हूं। मैंने कहा – तुम प्रदीप (दीपक) तो नहीं हो।' वह तपाक से बोला— 'कैसी बात करते हैं? मैं प्रदीप ही हूं।' वह इस नाम की पकड़ को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था । मैंने पूछा— जब तुम जन्मे नहीं थे, गर्भ में थे, तब तुम क्या थे? तब तुम्हारा नाम क्या था ?' उसने कहा— तब तो कोई नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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