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युद्ध : अहंकार के साथ
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अहंकार ने सचाइयों को बहुत झुठलाया है । इसीलिए यह बड़ा दोष माना जाता है। सदा यह सचाई को झुठला कर बढ़ता है । समाज में प्रतिष्ठा, सम्मान और बड़प्पन बने, यह अहंकार के साथ जुड़ा हुआ है । ये सारे अहंकार के पालित-पोषित पुत्र हैं। जहां अहंकार है वहां महत्त्वाकांक्षा और बड़प्पन की बात स्वतः पैदा हो जाती है
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व्यक्ति अपने अहं के कारण अपने आपको बहुत बड़ा मान लेता है और दूसरों को छोटा मानता है । सचाई को झुठलाने का परिणाम भी बड़ा विचित्र होता है ।
अरब के रेतीले मैदान में एक अमीर ऊंट पर बैठ कर जा रहा था । उसका नौकर पीछे बैठा था । उसके हाथ में छाता था ताकि अमीर को धूप न लगे । उसके हाथ में पंखी थी ताकि अमीर को पसीना न आए। दोनों मजे से जा रहे थे । कुछ ही दूर गए होंगे कि उनकी दृष्टि पैदल चल रहे एक फकीर पर पड़ी। वह अकेला था, कोई साथी नहीं था । चिलचिलाती धूप में वह पैदल जा रहा था। उसकी चाल में मस्ती थी । अमीर ने उसको देखा । अंहकार जाग उठा । वह बोला —– अरे फकीर ! इतनी तेज धूप में ऐसे ही घूम रहा है, बिना मौत मर जाएगा। फकीर मस्त था । वह बोला-फकीर कभी नहीं मरेगा । मरेगा तो अमीर मरेगा। ऊंट आगे बढ़ गया। फकीर अपनी मस्ती में पीछे-पीछे चलने लगा ।
कुछ समय बीता। तेज आंधी आई । अमीर और उसका नौकर—दोनों सम्हल नहीं सके। दोनों नीचे गिरे और मर गए। ऊंट भी लड़खड़ाकर गिर पड़ा और
मर गया ।
फकीर निकट आया । पहचान गया । बोला- अरे ! मेरे जैसा ही तो यह आदमी था। पर अमीरी के अहं ने मेरे मित्र को बेमौत मार डाला !
सचमुच अहंकार बेमौत मार डालता है । यह जितनी हत्याएं करता है, एक आतंकवादी भी उतनी हत्याएं नहीं कर पाता । यह प्रतिक्षण मारता रहता है ।
'मैं कुछ हूं' यह अहंकार मारने वाला होता है । अध्यात्म के क्षेत्र में जो 'अंह' तारने वाला था, वही 'अहं' स्वयं के साथ जुड़कर मारने वाला बन गया
रक्षक भक्षक बन गया ।
एक लड़का मेरे पास आया। मैंने पूछा- तुम कौन हो ?' वह बोला — मैं प्रदीप हूं। मैंने कहा – तुम प्रदीप (दीपक) तो नहीं हो।' वह तपाक से बोला— 'कैसी बात करते हैं? मैं प्रदीप ही हूं।' वह इस नाम की पकड़ को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था । मैंने पूछा— जब तुम जन्मे नहीं थे, गर्भ में थे, तब तुम क्या थे? तब तुम्हारा नाम क्या था ?' उसने कहा— तब तो कोई नाम
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