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________________ 76 सोया मन जग जाए नहीं है। सीधा मार्ग होता है तो उस पर हर कोई चल सकता है, पर दुर्गम मार्ग पर अकेला व्यक्ति चल नहीं पाता। उसे सहयोगी की अपेक्षा होती है। अनुप्रेक्षा उस अवस्था में पूर्ण सहयोग करती है और व्यक्ति में नई स्फूर्ति का संचार करती है। तब व्यक्ति सहजरूप से वृत्ति को बदलने में कामयाब हो जाता है। संवर और निर्जरा–निरोध और शोधन की ये दो प्राणालियां हैं। केवल निरोध या शोधन पर्याप्त नहीं है। शोधन के साथ-साथ यदि भविष्य में न करने का संकल्प नहीं होता, निरोध नहीं होता, संवर नहीं होता, तो फिर शोधन का अर्थ न्यून हो जाता है। __प्रत्येक शोधन के साथ निरोध और निरोध के साथ शोधन होना चाहिए। प्रेक्षा निरोध की प्रणाली है और अनुप्रेक्षा शोधन की प्रणाली है। इन दोनों प्रणालियों के सहारे ही व्यक्ति कामवृत्ति के युद्ध में विजयी बन सकता है। __ अनेक लोग अपनी शक्ति का उपयोग नहीं करते और दूसरों की शक्ति पर अधिक निर्भर रहते हैं। वृत्तियों के परिष्कार में स्वशक्ति पर निर्भर होना आवश्यक है। काम की वृत्ति संकल्प से पैदा होती है। मन में संकल्प उठता है और कामवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। जब तक व्यक्ति का दृष्टिकोण आध्यात्मिक नहीं बनेगा, तब तक इस पर नियन्त्रण नहीं पाया जा सकेगा। यह आध्यात्मिक नियंत्रण केवल धर्मजगत् के लिए ही नहीं, पूरे जगत् के लिए आवश्यक है। यह इसलिए कि इन तीन-चार दशकों में मुक्तभोग, मुक्त यौनाचार, समलैंगिक व्यभिचार आदि काम-सेवन की विधियों ने समूचे विश्व को आक्रान्त कर रखा है। सारा विश्व आतंक से भरा है। 'एड्स' की बीमारी इसी का परिणाम है। यह केन्सर से भी अत्यधिक भयंकर बीमारी है। कामवृत्ति की उच्छृखलता के इस परिणाम ने सारे संसार को भयग्रस्त कर डाला। आज अणुबम का जितना आतंक है उससे कम आतंक नहीं है ‘एड्स' की बीमारी का। सारे राष्ट्र इस बीमारी की भयंकरता से घबरा गए हैं। इसकी रोकथाम के लिए सघन प्रयत्न किए जा रहे हैं। इस बीमारी का एकमात्र कारण है कामवृत्ति की निरंकुशता। इस संदर्भ में, जागतिक और सामाजिक समस्या के संदर्भ में, हम विचार करें तो कामवृत्ति पर नियन्त्रण करना और उसके साथ संघर्ष करना अत्यन्त आवश्यक है। आज की शिक्षा या वातावरण ने युवक के मन में एक भ्रान्ति पैदा कर दी कि इच्छा का दमन नहीं करना चाहिए। काम-वासना का दमन नहीं करना चाहिए। इस भ्रान्ति ने मुक्त यौनाचार को प्रश्रय दिया और एक समस्या पैदा कर दी। दमन का अर्थ वह युवक समझा नहीं। 'दमन नहीं करना'—इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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