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________________ + सोया मन जग जाए आध्यात्मिक शक्तियों के लिए उत्तरदायी है। जब हम बाएं नथुने से श्वास लेते हैं तो दायां मस्तिष्क-पटल सक्रिय होता है, सृजनात्मक शक्तियों का केन्द्र सक्रिय हो जाता है। जब हम दाएं नथुने से श्वास लेते हैं तब बौद्धिक क्षमताओं का केन्द्र सक्रिय हो जाता है। एक विद्यार्थी मंदबुद्धि है। वह गणित, भाषा आदि विषयों में कमजोर है। यदि वह विद्यार्थी दाएं नथुने से श्वास लेने का अभ्यास करे तो उसकी क्षमताएं बढ़ने लग जाएंगी। जिस विद्यार्थी में भावात्मक क्षमताएं कम हैं, अन्तर्दृष्टि और सूझबूझ कम है, वह यदि बाएं नथुने से श्वास लेने का अभ्यास करे तो उसकी वे क्षमताएं वृद्धिंगत हो सकती हैं। समवृत्ति श्वास प्रेक्षा पूर्ण व्यक्तित्व के विकास का सूत्र है। इससे दोनों प्रकार की क्षमताएं विकसित होती हैं, क्योंकि इसमें बारी-बारी से दोनों नथुनों से श्वास लिया जाता है। ___ कामवृत्ति पर नियंत्रण पाने का एक बिन्दु है, स्थान है, मेरुदंड में जिसे लंबर रीजन' कहा जाता है। तेरह चैतन्य-केन्द्रों में एक है आनन्द-केन्द्र। इसका स्थान है फुप्फुस के नीचे और हृदय के पास। आनन्दकेन्द्र पर ध्यान करने से कामवृत्ति नियंत्रित होती है, उत्तेजना पर नियंत्रण होता है। एक बात स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि कामवृत्ति की उत्तेजना जिन अवयवों में होती है वे नियंत्रण के अवयव नहीं हैं। वे केवल अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। कामवृत्ति की उत्तेजना आन्तरिक प्रतिक्रिया है। आनन्द-केन्द्र पर ध्यान करने से वह उत्तेजना नियंत्रित हो सकती है। कामवृत्ति को वश में करने का दूसरा उपाय है—अन्तर्यात्रा। जब हम चेतना की रीढ की हड्डी के निचले सिरे से लेकर ज्ञानकेन्द्र (मस्तिष्क) में ले जाते हैं तो इसका तात्पर्य है कि समूचे मेरुदंड की प्रणाली पर हमारा कन्ट्रोल हो जाता है। मेरुदंड बहुत महत्वपूर्ण अवयव है। अनेक स्वचालित प्रवृत्तियों का नियंत्रण मेरुदंड के पास है। मस्तिष्क बड़ा है। वह सब पर नियंत्रण करने में सक्षम है। वह मेरुदंड के कार्य में सीधा हस्तक्षेप नहीं करता। जो अनैच्छिक प्रवृत्तियां हैं, उनका नियंत्रण मेरुदंड से होता है। मेरुदंड को हम अन्तर्यात्रा से साध लेते हैं। इसका तात्पर्य हुआ कि हम स्वचालित वृत्तियों पर भी नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं। एक बार के नियंत्रण से काम नहीं चलता। वृत्तियां बार-बार उठती हैं तो उन पर बार-बार चोट करनी पड़ती है। तभी वे नियंत्रित हो पाती हैं। वृत्तियां बहुत जिद्दी होती हैं। बार-बार उठती रहती हैं, क्योंकि उनका उपादान भीतर पड़ा है, भीतर जमा है। किन्तु उपाय के द्वारा उनकी इस जिद्दी प्रकृति को मिटा सकते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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