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________________ युद्ध : कामवृत्ति के साथ 73 सुनी। पुरस्कार की बात से सब के मुंह में पानी आ गया। अनेक व्यक्तियों ने प्रयत्न किया, पर व्यर्थ । एक व्यक्ति ने बकरे को इतना खिलाया कि अब वह कुछ भी खाने के लिए तैयार नहीं होगा । वह बकरे को लेकर राजा के पास आया । बकरा हट्टाकट्टा था। राजा के आदेश से बकरे के सामने घास रखा और वह तत्काल उसे खाने लग गया। बकरा लाने वाला यह देख कर हैरान रह गया। आदत को बदलना सहज नहीं है। आदत तब बदली जा सकती है जब गहरी निष्ठा और अध्यवसाय हो, श्रम हो । इसके साथ बौद्धिकता भी चाहिए और सम्यक् उपाय भी चाहिए। उपाय के बिना आदत को बदलना संभव नहीं है । और भी अनेक व्यक्ति आए । पर बकरे की इस आदत के समक्ष वे पराजित होकर ही गए। अन्त में एक अनुभवी व्यक्ति बोला — मैं पांच दिन के भीतर आपकी घोषणा को सही कर दिखाऊंगा । वह बकरे को लेकर दूर जंगल में गया। बकरे ने जैसे ही वहां घास खाना प्रारंभ किया, उसकी पीठ पर एक कोड़ा मारा । कुछ समय बाद फिर खाने लगा और फिर पीठ पर एक कोड़ा मारा । यह क्रम चलता रहा। जब-जब बकरा खाने का प्रयत्न करता, तब-तब उसे कोड़े का प्रहार झेलना पड़ता। दूसरे दिन बकरे के सामने घास डाला गया । बकरे ने खाने का प्रयत्न ही नहीं किया। उसके मन पर कोड़े का प्रहार घाव कर गया था। उसने सोचा, खाने का अर्थ है मार खाना । वह व्यक्ति बकरे को लेकर राजा के पास आया। राजा ने परीक्षण किया । व्यक्ति का उपाय ठीक निकला। वह पुरस्कृत हुआ । आदत को बदला जा सकता है। उस पर नियंत्रण किया जा सकता है । पर सही उपाय चाहिए। जब डंडे के बल पर बकरे को प्रशिक्षित किया जा सकता है, उसकी आदत को बदला जा सकता है तो कामवृत्ति को क्यों नहीं बदला जा सकता? आवश्यकता है सही उपाय की । I कामवृत्ति पर नियन्त्रण पाने के लिए समवृत्ति श्वासप्रेक्षा को काम में लेना होगा । योग पद्धति में जिसे अनुलोम-विलोम प्राणायाम कहा जाता है, वही प्रेक्षाध्यान पद्धति में समवृत्ति श्वास प्रेक्षा के नाम से अभिहित है । एक नथुने से श्वास लेना और दूसरे नथुने से निकालना, यही है समवृत्ति श्वासप्रेक्षा । हम बाएं नथुने से श्वास लेते हैं तब हमारा दायां मस्तिष्क प्रभावित होता है और जब हम दाएं नथुने से श्वास लेते हैं तो बायां मस्तिष्क प्रभावित होता है । मस्तिष्क का बायां पटल भाषा, विज्ञान, गणित आदि के लिए उत्तरदायी है और दायां पटल 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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