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सोया मन जग जाए
कैसे उत्पन्न होते हैं, यह जानना होगा। हमारे आचरण और व्यवहार के दो हेतु है—आन्तरिक और बाह्य । भूख और प्यास की उत्पत्ति का मूल हेतु है आन्तरिक । बाह्य हेतु उनका उद्दीपन कर सकता है, पैदा नहीं कर सकता। ___ इसी प्रकार कामवृत्ति का मूल हेतु आन्तरिक है। बाह्य वातावरण उसको उद्दिप्त कर सकता है, पैदा नहीं कर सकता। कामवृत्ति परिस्थितिजनित नहीं होती। परिस्थिति उसके उद्दीपन में सहयोगी हो सकती है, होती है। इस वृत्ति की जनक है आन्तरिक परिस्थिति। अन्तर में काम की तरंग उठती है और समूचे शरीर-तंत्र को प्रभावित कर देती है, नाड़ीतंत्र को उत्तेजित कर डालती है। बाह्य परिस्थिति यदि अनुकूल होती है तो उत्तेजना बढ़ती है और व्यक्ति वैसा आचरण कर डालता है। कामवृत्ति का मूल उत्पादक है आन्तरिक वातावरण। इसके साथ-साथ हमें शारीरिक और कार्मिक-इन दो आधारों पर भी विचार करना होगा। कामवृत्ति के जागने का शारीरिक आधार भी होता है और कार्मिक आधार भी होता है। कर्म-संस्कार भी इसमें काम करते हैं। कामवृत्ति का मूल कारण है—मोह के परमाणु । कर्मशास्त्र की भाषा में इन्हें वेद के परमाणु कहा जाता है। ये कामवृत्ति के मूल घटक तत्त्व हैं। उस तरंग को स्थान देने वाली मानसिक दशा भी बनती है। उसका शारीरिक आधार है 'लिम्बिक सिस्टम' । यह हमारे मस्तिष्क का ही एक हिस्सा है। इसके साथ जुड़ा हुआ है इसी का एक भाग है हाइपोथेलेमस। साथ-साथ उस पर नियंत्रण करने का आधार भी हमारे पास है। वह है ‘लम्बर रीजन' जो मेरुदंड की प्रणाली में होता है। यह कामवृत्ति पर नियन्त्रण करता है। हमें और अधिक ध्यान देना होगा, विचार करना होगा कि यह वृत्ति कैसे पैदा होती है, शरीर के किस अवयव-विशेष पर प्रभाव डालती है और किस प्रकार इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है?
नियंत्रण की एक टेक्निक होती है। यह एक कला है, उपाय है। संसार में निरुपाय कुछ भी नहीं है। उपाय को जान लेने पर सब सहज-सरल हो जाता है।
राजा था। उसके मन में यह विकल्प उठा कि क्या ऐसा संभव है कि बकरे के सामने कुछ खाने का पदार्थ आए और वह न खाए? बकरा निरंतर खाता रहता है। यह उसका स्वभाव है। राजा ने घोषणा कराई कि यदि कोई व्यक्ति बकरे को ऐसा प्रशिक्षित कर दे कि सामने भोज्य पदार्थ पड़े रहने पर भी बकरा उसमें मुंह न दे, तो उस व्यक्ति को पुरस्कृत किया जाएगा।' घोषणा सब ने
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