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आत्मना युद्धस्व
67 संघर्ष और युद्ध के पांच हेतु भी आदमी में है और युद्ध-निवारण के पांच हेतु भी उसी में है। ये दोनों मस्तिष्क में विद्यमान हैं। इसीलिए आदमी का दोहरा व्यक्तित्व चल रहा है। आदमी कभी लड़ता है और कभी शांत होता है। आदमी कभी विषय के आवेश में होता है और कभी शांत जीवन जीता है। कभी वह कषाय के आवेश में होता है और कभी शांत जीवन जीता है। कभी वह कषाय के आवेश से आविष्ट होता है तो कभी शान्तरस से आप्लावित होता है। इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य में युद्ध का कारण भी विद्यमान है और युद्ध का निवारण भी विद्यमान है।
अध्यात्म के आचार्यों ने इस सचाई का अनुभव किया और दिशा-परिवर्तन की बात कही। उन्होंने कहा—तुम लड़ना चाहते हो, लड़ाई के हेतु तुम्हारे मस्तिष्क में विद्यमान है, तो तुम लड़ो, पर थोड़ा परिवर्तन कर दो, कुछ आगे सरक जाओ। लड़ना चाहते हो तो अपने आपसे लड़ो। अपने आप से लड़ने का अर्थ है—इन्द्रिय-विषयों के साथ लड़ना, कषाय के साथ लड़ना, झूठ और अज्ञान के साथ लड़ना, प्रमाद के साथ लड़ना, लड़ाई में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। डटकर लड़ो, पीछे मत हटो। पर स्वयं के साथ लड़ो, अपनी वृत्तियों के साथ लड़ो। महावीर ने कहा-पुरुष! तू आत्मा के साथ लड़। बाहरी युद्ध से तुझे क्या मिलेगा?' आत्मा के साथ लड़ना ही यथार्थ में लड़ना है। आज के युद्ध में लाखों आदमी मरते हैं। दोनों पक्षों के आदमी हताहत होते हैं। एक जीतता है, एक हारता है। पर दोनों घाटे में रहते हैं। हारने वाला तो घाटे में रहता ही है, जीतने वाला भी लाभ में नहीं रहता। युद्ध कितनी समस्याओं को पैदा कर देता है, यह आप और हम सब जानते हैं। जीतने वाले राष्ट्र को भी युद्ध से उद्भूत समस्याओं को सुलझाने में वर्षों लग जाते हैं। निरन्तर उसे उन समस्याओं से जूझना पड़ता है। पराजित राष्ट्र को भी पुन: अपने पैरों पर खड़े होने के लिए दीर्घ समय लगता है। प्राचीन काल का राम-रावण का युद्ध, कौरव-पांडव का युद्ध और चेटक-कोणिक का युद्ध इस बात के साक्षी हैं कि पक्ष और प्रतिपक्ष के अपार जन-संहार के बावजूद भी कोई लाभ में नहीं रहा। इसीलिए अध्यात्म के आचार्यों ने यह सूत्र दिया—'आत्मना युद्धस्व'-अपने आप से लड़ो। दूसरों से मत लड़ो। अपने आपसे लड़ने का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। लड़ते चले जाओ। जीवन भर लड़ते रहो। तब तक लड़ते रहो, जब तक की सारी वृत्तियां शरणागत न हो जाएं। वे शरणागत होती हैं निरन्तर और दीर्घकालीन संघर्ष के द्वारा।
महावीर ने कहा—'जुद्धारिहं खलु दुल्लहं'–पुरुष! युद्ध की पूरी सामग्री
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