SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 66 सोया मन जग जाए नहीं होता, कोई चेतनात्मक नियन्त्रण नहीं होता । सारा नियन्त्रण अचेतनात्मक है, अचेतन के द्वारा हो रहा है । नींद आना, भोजन का पचना और श्वास का आना-जाना —ये सब स्वतः होने वाली क्रियाएं हैं। मन में कभी काम की, कभी क्रोध की और कभी भय की वृत्तियां उठती हैं, ये हमारी इच्छा पर निर्भर नहीं हैं, स्वत: चालित प्रणाली पर निर्भर हैं । ये अपने आप उठती हैं । ऐच्छिक प्रणाली पर आदमी नियन्त्रण कर सकता है। वह चाहे तो उठ सकता है, बैठ सकता है, सो सकता है, सिर हिला सकता है, दौड़ सकता है, हाथ पसार सकता है, बोल सकता है। इन सब पर हमारा चेतनात्मक नियन्त्रण है । किन्तु क्रोध, अहं, भय या काम-वासना की वृत्तियों पर हमारा चेतनात्मक नियन्त्रण नहीं होता । हम चाहते हैं, ये वृत्तियां न जागें, पर इनके उभार को हम रोक नहीं सकते । हमें ज्ञात ही नहीं हो पाता और ये सभी वृत्तियां जाग जाती हैं। जो चेतनात्मक नियन्त्रण से परे हैं उन पर नियन्त्रण किया जा सकता है श्वास-प्रणाली के द्वारा । यदि हम श्वास को सही ढंग से लेना सीख जाते हैं तो चेतनात्मक नियंत्रण से परे की सभी स्थितियों पर नियंत्रण पा सकते हैं । स्वत:चलित प्रणाली पर नियंत्रण पाने का यही एक माध्यम है । इसके आधार पर हम अचेतन प्रणाली पर अधिकार कर, उसका मनचाहा उपयोग कर सकते हैं। संघर्ष का पाचवां कारण है—प्रमाद के कारण अनेक लड़ाइयां होती हैं। अनेक राजाओं के प्रमाद के कारण युद्ध हुए और हजारों व्यक्ति मारे गए। छोटे से प्रमाद भी बड़े-बड़े युद्धों का कारण बन जाता है । राजा या अधिकारी प्रमाद में रहता है, विलासिता भोगता है तब यह सुनिश्चित है कि वह अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक नहीं रह सकता, अप्रमत्त नहीं रह सकता । यह स्थिति जनता में विद्रोह की भावना पैदा करती है और धीरे-धीरे सारा राज्य आपसी कलहों और संघर्षों में नष्ट हो जाता है । प्रमाद भय पैदा करता है और इस भय से निपटने के लिए व्यक्ति को अनेक संघर्ष करने पड़ते हैं । 1 आज प्रत्येक व्यक्ति दोहरे व्यक्तित्व का जीवन जी रहा है। मस्तिष्क में दोहरे व्यक्तित्व की परतें हैं। मनुष्य में विषय के आवेश की शक्ति है तो उसके पास उस आवेश को विलीन करने की भी शक्ति है । मनुष्य में कषाय के आवेश को समाप्त करने की भी शक्ति है । उसमें तीसरी शक्ति है तत्त्व - श्रद्धा, सत्य को जानने और उसके प्रति आस्थावान् होने की । उसमें चौथी शक्ति है आत्मज्ञान, स्वयं को जानना । उसमें पांचवीं शक्ति है— अप्रमाद अवस्था में रहना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy