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आत्मना युद्धस्व
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क्षेत्रों में जो वाद-विवाद या लड़ाइयां हुई हैं वे सत्य तक पहुंचने के धैर्य के अभाव में हुई हैं। सचाई तक पहुंचने के बाद कोई आदमी लड़ता नहीं है। जो सचाई को जान लेता है, उसकी तह तक पहुंच जाता है, वह फिर कभी लड़ता नहीं। सचाई के प्रति जिसकी आस्था नहीं है, जो सचाई तक नहीं पहुंचा है, वह लड़े बिना रह नहीं सकता। वह कभी माता-पिता के साथ, कभी भाई के साथ और कभी पुत्रों के साथ या पत्नी के साथ लड़े बिना रह नहीं पाता, क्योंकि वह सचाई से दूर है। सारी लड़ाइयां झूठ में से उत्पन्न होती हैं। जब तक यथार्थ तक नहीं पहुंच पाते, लड़ाइयां मिट नहीं सकतीं। आदमी सत्य मान रहा है मकान को, धन को. वस्त्र को, जमीन-जायदाद को। वह शरीर को और सभी पदार्थों को सत्य मान बैठा है। वह अपने जीवन का यथार्थ मान कर जी रहा है। ये सारे पदार्थ अयथार्थ हैं, असच हैं। इनको सचाई मानने के कारण ही संघर्ष और युद्ध होते हैं। छोटे से जमीन के टुकड़े के लिए दो भाई लड़ते हैं, क्योंकि दोनों ने यह मान रखा है कि दुनिया की सबसे बड़ी सचाई है यह भूमी, यह पैसा। जब तक यह मान्यता रहती है तब तक सत्य के प्रति या तत्त्व के प्रति आस्था का निर्माण नहीं होता
और इसके अभाव में संघर्ष या युद्ध को टाला नहीं जा सकता। ___ लड़ाई या संघर्ष का बहुत बड़ा कारण है सचाई के ज्ञान का अभाव, तत्त्व के प्रति अश्रद्धा।
संघर्ष का चौथा कारण है आत्मा का अज्ञान, स्वयं का अज्ञान। यह है अपने आपको न जानना, स्वयं को न जानना। जो स्वयं को नहीं जानता वह निरन्तर लड़ाई के मूड में रहता है। युद्ध का यह भी एक कारण है।
प्रेक्षाध्यान के शिविर में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसी प्रेरणा से आता है कि मैं अपने आपको जान सकूँ, पहचान सकूँ। दूसरों को जानते-जानते, देखते-देखते आदमी विश्रान्त हो गया, ऊब गया। अब वह स्वयं को जानना-देखना चाहता है। जब आदमी दिन-रात दूसरों को ही जानता-देखता है तब उसे अपने आपको जानने-देखने का अवसर ही नहीं मिलता।
अपने आपको जानने के लिए दीर्घश्वास प्रेक्षा बहुत शक्तिशाली उपाय है। हमारा नाड़ीयंत्र दो भागों में विभक्त है—स्वत:चलित नाड़ीतंत्र और इच्छाचालित नाड़ीतंत्र। आदमी जब चाहे अंगुली हिला सकता है और अंगुली हिलाना बंद कर सकता है। यह इच्छाचालित नाड़ीतन्त्र के आधार पर होता है। आदमी ने अपनी इच्छा से भोजन किया, पर उस भोजन का पचना उसकी इच्छा पर निर्भर नहीं है। यह स्वत: होने वाली क्रिया है। इस स्वत:चालित प्रणाली पर हमारा नियन्त्रण
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