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सोया मन जग जाए कंचन और कामिनी, धन और स्त्री। यह आवेश युद्ध पैदा करता है। बहुत सारे युद्ध विषयावेश के कारण हुए हैं। चाहे राम-रावण का युद्ध हो या कौरव-पांडव का, सबके पीछे विषय का आवेश दृष्टिगोचर होता है। ___ संघर्ष का दूसरा कारण है कषाय का आवेश। जब-जब क्रोध, अहंकार आदि कषाय की वृत्तियां जागृत होती हैं, तब-तब युद्ध शुरू हो जाता है। अहंकार के कारण कितनी लड़ाइयां होती हैं। यदि लड़ने वाले लोगों को कहा जाए कि लड़ाई की कोई सार्थकता नहीं है तो उनका तर्क होता है कि हम धन या पैसे के लिए नहीं लड़ते, पर लड़ाई तो बात की है। यह बात की लड़ाई नहीं है, यह तो अहं की लड़ाई है। कोई भी अपने अहं को छोड़ना नहीं चाहता और तब लड़ना अनिवार्य हो जाता है। अहं युद्ध की तीव्र प्रेरणा है। अहं की सुरक्षा के लिए आदमी टूट जाता है पर उसे छोड़ना नहीं चाहता। ___ संघर्ष का तीसरा कारण है—तत्त्व की अश्रद्धा। तत्त्व के प्रति, सत्य के प्रति
आदमी श्रद्धावान् नहीं है। कुछ सत्य को जानते हैं, कुछ नहीं जानते। जो जानते हैं वे भी उसके प्रति आस्थावान् नहीं हैं। सत्य के प्रति उनमें विश्वास गाढ नहीं हुआ है। उनमें इतना धैर्य भी तो नहीं है कि वे सचाई को परख सकें, उसका अनुशीलन और अवगाहन कर सकें। सत्य की श्रद्धा के लिए धैर्य का होना अत्यन्त आवश्यक है। बहुत लोग अपनी अधृति के कारण सत्य तक पहुंच ही नहीं पाते।
रूस के प्रसिद्ध चिन्तक टालस्टाय के पास एक युवक आकर बोला—सफलता का रहस्य क्या है ? टालस्टाय ने कहा —सफलता का रहस्य-सूत्र है धैर्य। युवक ने सिर हिलाते हुए कहा नहीं, यह नहीं हो सकता। टालस्टाय ने पूछा क्यों? युवक बोला मैं कितना ही धैर्य रखू या प्रतीक्षा करूं पर क्या चलनी में पानी भर पाऊंगा?
युवक सत्य तक नहीं पहुंच पाया, बीच में ही अटक गया, भटक गया। सचाई की गहराई में उतरे बिना कोई भी व्यक्ति उस तक नहीं पहुंच पाता।
टालस्टाय ने शांत स्वर में कहा युवक! यदि धैर्य हो तो चलनी पानी से भर सकती है। यदि कोई व्यक्ति पानी के जमने तक धैर्य रखे, प्रतीक्षा करे तो वह पानी चलनी में भर सकता है। इतना धैर्य हो कि पानी जम जाए, बर्फ बन जाए, फिर चलनी में वह ठहर सकता है।
वास्तव में सत्य के प्रति हमारी आस्था नहीं है। हम प्रतीक्षा करना नहीं जानते इसीलिए बीच में ही अवरोध पैदा हो जाते हैं। जब आदमी सचाई तक नहीं पहुंचता तब लड़ाइयां प्रारम्भ हो जाती हैं। दर्शन के क्षेत्र में अथवा अन्यान्य
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