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________________ ८. आत्मना युद्धस्व युद्ध एक मौलिक मनोवृत्ति है। मनोविज्ञान ने कुछ मौलिक मनोवृत्तियां मानी हैं। उनके अनेक वर्गीकरण है। एक मौलिक मनोवृत्ति है युद्ध, संघर्ष। आदमी आदिमयुग से युद्ध करता रहा है, लड़ता रहा है। यह उसकी स्वाभाविक मनोवृत्ति बन गई है कि कभी वह किसी उद्देश्य के लिए संघर्ष करता है तो कभी वह निरुद्देश्य भी संघर्ष करता रहता है। संघर्ष करना उसको प्रिय है। प्रयोजन हो या न हो, यह गौण है। मुख्य है संघर्षरत रहना, लड़ना। ___ अध्यात्म के विकास के साथ-साथ यह सोचा जाने लगा कि क्या मनुष्य की इस मौलिक मनोवृत्ति को बदला जा सकता है? धर्म का भी यह अहं-प्रश्न है कि क्या मनुष्य की वृत्तियों का रूपान्तरण या परिष्कार किया जा सकता है? यदि अध्यात्म और धर्म के द्वारा वृत्तियों का रूपान्तरण नहीं होता है तो धर्म की सार्थकता नहीं रहती। धर्म और अध्यात्म की सार्थकता वृत्ति-परिष्कार पर अवलंबित है। धर्म ने मनुष्य को नई दिशा देते हुए कहा कि तुम लड़ना या संघर्ष करना नहीं छोड़ सकते तो भले ही लड़ो पर दूसरों के साथ मत लड़ो, स्वयं के साथ लड़ो। इस सूत्र ने मनुष्य की मौलिक वृत्ति को सुरक्षा देते हुए उसके संघर्ष करने की दिशा को बदल दिया। तुम लड़ो, पर अपने आपसे । तुम लड़ो, पर अपनी वृत्तियों से। जो वृत्तियां दूसरों से लड़वाती हैं उनसे तुम लड़ो, उन्हें परास्त करो। ___ आदमी लड़ता है। इसका मूल कारण है उसकी वृत्तियां। आदमी में वृत्तियों की एक श्रृंखला है। वे संघर्ष की प्रेरणा देती हैं। उसी प्रेरणा से प्रेरित होकर आदमी लड़ता है, युद्ध के मोरचे पर जाता है। आध्यात्म की भाषा में वे वृत्तियां पांच हैं१. विषय का आवेश ४. आत्मा का अज्ञान २. कषाय का आवेश ५. प्रमाद ३. तत्त्व की अश्रद्धा संघर्ष का पहला कारण है—विषय का आवेश। इन्द्रियां और इन्द्रियों के विषय लड़ाते हैं। जब-जब विषय का आवेश प्रगट होता है आदमी लड़ाई करने के लिए तत्पर हो जाता है। प्राचीन काल में युद्ध के दो कारण माने गए हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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