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________________ . सोया मन जग जाए इस सचाई का अनुभव प्रत्येक साधक को करना चाहिए कि अभ्यास और आयास करने से बिना मांगे भी आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है, वरदान मिल जाता है । जिस व्यक्ति का पुरुषार्थ और पराक्रम निरन्तर चलता रहता है उसका विकास शतगुना होता है। केवल दस-बीस दिन के अभ्यास से यदि आप यह मान लें कि आप समस्याओं से छुटकारा पा लेंगे या दुःखों से मुक्त हो जाएंगे तो यह भ्रान्ति होगी । ऐसा आशीर्वाद भी नहीं मिलेगा । हमें न चमत्कार में विश्वास है और न जादू के डंडे में, और न शक्तिपात में । मेरा विश्वास है अपने पुरुषार्थ में, अपने पराक्रम में, अपने आयास और अभ्यास में। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में इतनी पात्रता और अर्हता पैदा करे कि उसे आशीर्वाद मांगना न पड़े, लेकिन आशीर्वाद देने वाला स्वयं आए और कहे कि लो, मैं तुम्हें कुछ देने आया हूं। ऐसा तब होता है जब व्यक्ति का श्रम और अभ्यास प्रखर होता है । ऐसी आत्मा को खोजते हुए सिद्धपुरुषों को स्वयं उसके द्वार पर आना होता है, द्वार खटखटाना होता है। योग साधना में ऐसी घटनाएं प्राप्त हैं कि गुरु शिष्य की खोज में घूम रहे हैं। गुरु ने शिष्य को खोजा, शिष्य ने गुरु को नहीं खोजा। गुरु स्वयं खोज में रहते हैं कि उन्हें योग्य शिष्य चाहिए जो अध्यात्मविद्या को आगे बढ़ा सके । 56 आचार्य प्रभव जैन परंपरा के महान् आचार्य थे । वे श्रुतकेवली और भगवान् महावीर की परंपरा के निकटवर्ती प्रभावक आचार्य थे। उन्हें शिष्य नहीं मिला । वे अपनी ज्ञानराशि देना चाहते थे। कोई था नहीं, इसलिए शिष्य की खोज में निकले। पूरे साधु-संघ को देखा। वैसा पात्र कोई साधु नहीं मिला, जो उनके ज्ञान को आत्मसात् कर सकता हो । साध्वी संघ को देखा, पर वहां भी कोई ग्राहक नजर नहीं आया । श्रावक-श्राविका संघ को देखा, पर वहां भी निराशा ही हुई । चौदह पूर्वों की ज्ञानराशि / विशाल ज्ञान - संपदा किसे दे । बिना पात्र वह सजीव नहीं रह सकती । विकट प्रश्न उपस्थित हो गया । आखिर खोज करते-करते एक ब्राह्मण पर ध्यान टिका । शय्यंभव वेदों का पारगामी ब्राह्मण था । महान् और बहुश्रुत। आचार्य प्रभव ने उसे अपनी ओर खींचा। उसमें आकर्षण पैदा हुआ। वह आया और शिष्य बन गया। सारी ज्ञानराशि उसे दे दी । यह एक बहुत बड़ी घटना है, गुरु द्वारा शिष्य के खोज की। यह विरल घटना नहीं है। ऐसी अनेक घटनाएं योग के क्षेत्र में हुई हैं । उपयुक्त शिष्य मिलता है, पर तब, जब आयास और खोज होती है, अन्यथा नहीं । हम इस सचाई को याद रखें कि अभ्यास सफलता दिलाता है । हमारा विश्वास अभ्यास और पुरुषार्थ पर रहे, अनायास प्राप्ति पर न रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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