________________
54
का। कैसे पकड़ में आएगी?
प्रेक्षाध्यान करने वाले का यह दृष्टिकोण बने कि बीमारी की खोज मन में की जाए। वह देखे, कौन सी वृत्ति मन में जाग रही है और कौन सी वृत्ति प्रबल है, सक्रिय है और उसके द्वारा किस प्रकार की बीमारी पैदा हो रही है। मानसिक स्वास्थ्य को पाने के लिए आवेशों पर, क्षोभ और चंचलता पर नियंत्रण आवश्यक है । चंचलता होती है तो कोई भी घटना सुनी और मन क्षुब्ध हो गया । तलाब में कंकड़ फेंका, और तरंग उठ गई । उठती रहेगी तो वह पानी कभी शांत नहीं होगा । इसी प्रकार बाहरी घटना एक तरंग पैदा कर देती है तो मन स्वस्थ नहीं रह सकता और मन स्वस्थ नहीं रहता तो फिर तन भी स्वस्थ नहीं रह सकता । इस सचाई का स्पष्ट अनुभव होना दृष्टिकोण के बदलने की तीसरी पहचान है ।
चौथी बात, सुख और सुविधा — ये दो हैं, इस सचाई का अनुभव बहुत आवश्यक है। सुख अलग है और सुविधा अलग है । पदार्थ के द्वारा सुविधा मिल सकती है किन्तु सुख नहीं मिल सकता । सुख का संवेदन हमारे भीतर है । मन स्वस्थ होता है तो सुख का संवेदन होता है और मन स्वस्थ नहीं और भाव स्वस्थ नहीं तो हजार सुविधा मिल जाने पर भी सुख का संवेदन नहीं हो सकता । सुख और सुविधा — इन दोनों मे भेदज्ञान होना, इसके पृथक् होने का बोध होना, यह चौथी सचाई है। यह दृष्टिकोण के बदलने का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है ।
आज की पदार्थवादी सभ्यता और संस्कृति, और उस पदार्थवादी सभ्यता और संस्कृति से उत्पन्न होने वाली समस्याएं सुविधा के साधनों को सुख मान लेने के कारण ही पैदा हुई हैं । हमने यह भेद करना छोड़ दिया और हमारे यह विवेक की चेतना समाप्त हो गई कि सुख और सुविधा में कोई अन्तर है । इन्हें एक ही मान लिया गया। इसी कारण ये समस्याएं उभरी हैं। दृष्टिकोण बदलने का यह चौथा महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि सुविधा को अलग मानना और सुख को अलग
1
सोया मन जग जाए
मानना ।
ये चार सूत्र हैं। चारसूत्री बोध और ये चारसूत्री सचाईयां जब स्पष्ट होती हैं, तब पता चलता है कि दृष्टिकोण बदल गया । इस दृष्टिकोण को बदलने के लिए आयास की जरूरत है, अभ्यास की जरूरत है । दो शब्द हैं आयास और अनायास । वर्तमान की मनोवृत्ति देखता हूं तो लोग सब कुछ अनायास पाना चाहते हैं। बहुत लोग कहते हैं कि आपका आशीर्वाद मिले । मैं भावना को गलत नहीं मानता, किन्तु मैं उस आशीर्वाद को पसन्द नहीं करता जो अनायास मिल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org