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________________ 52 इसलिए वह अनेक बुराइयां कर लेता है । आदमी अपने आपको इतना शुद्ध और निखालिस मानता है कि उतना शायद दूसरे को कभी नहीं मानता। एक भोले से भोला आदमी भी अपने आपको पूर्ण मानता है । मैंने एक आदमी को देखा, जिसका ज्ञान यदि देखें तो हंसी आ जाए । किसी ने पूछा, एक घंटाघर की घड़ी है और एक हाथ की घड़ी है। घंटाघर के बड़ी घड़ी की सूई चलेगी और हाथ की छोटी घड़ी की सूई चलेगी, तो कुछ तो फर्क पड़ेगा? उसने कहा, बड़ी घड़ी की सूई चलेगी तो समय ज्यादा लगेगा। यह उत्तर है उस व्यक्ति का । वह इतना होशियार अपने आपको मानता है कि उतना होशियार अपने मैनेजर और अपने मालिक को भी नहीं मानता। कारण वही है, उसने पड़ोसी की बुराई का थैला तो आगे लटका लिया और अपनी बुराई का थैला पीछे कर लिया । यह दृष्टिकोण का विपर्यास है 1 प्रेक्षाध्यान की सफलता का पहला सूत्र, जीवन की सफलता का पहला सूत्र या दृष्टिकोण के बदलने का पहला सूत्र है अपने आपको देखने की आवश्यकता का अनुभव करना । जीवन में जैसे और बातें आवश्यक हैं, वैसे ही अपने आपको देखना भी बहुत आवश्यक है । इसकी अनुभूति करना यह दृष्टिकोण के परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है I दूसरी बात है, हम कैसे जानें कि दृष्टिकोण बदल गया ? हमारा व्यक्तित्व दो भागों में बंटा है। एक बाहरी भाग और एक भीतरी भाग । हमारा ध्यान केवल बाह्य व्यक्तित्व की ओर जाता है । हम बाहर को देखते हैं । समस्याओं का समाधान भी बाहर में खोजते हैं, शक्ति भी बाहर में खोजते हैं । दृष्टिकोण बदलने का अर्थ है, भीतर में शक्ति की खोज, आनन्द की खोज और ज्ञान की खोज । यदि वह खोज चले तो हमारा दृष्टिकोण बदल सकता है । हमारे भीतर में कितनी संपदा है! जब भीतर में देखना शुरू करते हैं तो प्रज्ञा जागती है। बाहर से जो लिया जाता है वह है ज्ञान और भीतर में जो जागता है वह है प्रज्ञान । वह पढ़ने से नहीं आता । कितनी ही पुस्तकें पढ़ जाएं पर प्रज्ञा नहीं आती । एक है इन्द्रिय ज्ञान और दूसरा है अतीन्द्रिय ज्ञान । जो बाहर से ज्ञान पैदा होता है वह है इन्द्रिय-ज्ञान । प्रज्ञा है आन्तरिक ज्ञान । वह 'आयसमुत्था' – भीतर से पैदा होती है, बाहर से पैदा नहीं होती । एक बिना पढ़ा लिखा आदमी बहुत प्रज्ञावान् और बहुत ज्ञानी हो सकता है। और एक पढ़ा लिखा आदमी बड़ा मूर्ख हो सकता है । Jain Education International सोया मन जग जाए For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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