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७. दृष्टि बदलें : सृष्टि बदलेगी
आंख साफ है तो दुनिया साफ है। आंख में धुंधलापन है तो सारी दुनिया धुंधली हो जाती है। तर्कशास्त्र में 'द्विचन्द्रबोध' की बात आती है। चांद है तो एक, किन्तु आंख की कमी के कारण वह दो दिखाई देता है। पीलिये के रोगी को सारी सृष्टि पीली-पीली दिखाई देती है। दृष्टि पर ही दृष्टि का बोध निर्भर है और साथ-साथ सृष्टि का निर्माण भी बहुत कुछ उस पर ही निर्भर है। जीवन-निर्माण में सबसे बड़ी बाधा है दृष्टिकोण का विपर्यय । जीवन-निर्माण का सबसे बड़ा रहस्य-सूत्र है दृष्टिकोण का निर्माण। प्रसिद्ध कहावत है—'यादृक् दृष्टि : तादृक् सृष्टि:'-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। ___पहले हम दृष्टि को बदलने की बात करें। सष्टि को बदलने की बात पहले न करें। यदि दृष्टि बदलती है तो प्रयोजन पूरा हो जाता है। सृष्टि अपने आप बदल जाती है। उसके लिए इतनी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। सबसे जटिल प्रश्न है दृष्टि को बदलना। यदि ध्यान के द्वारा दृष्टि बदल जाती है तो बहुत कुछ हो सकता है। मेरा विश्वास प्रति-दिन गहरा होता जा रहा है कि जिसने सचाइयों का साक्षात्कार नहीं किया, वह हजार बार दुहाई देगा, पर बदलेगा नहीं। सबसे बड़ा प्रश्न है सत्य का साक्षात्कार होना। दृष्टि बदलने का अर्थ है सत्य का साक्षात्कार होना।
दृष्टि बदलने का पहला सूत्र है अपने आपको देखना। जिस व्यक्ति ने अपने आपको देखना शुरू कर दिया उसका अर्थ है दृष्टि बदलना। बहुत लोग अपने आपको नहीं देखते। वे सब कुछ देखते हैं, केवल अपने को छोड़कर। यह बहुत विकट समस्या है। जब ऊंट के सवारों की गिनती हो रही थी, बीस चले थे, उन्नीस को गिन लिया पर अपने आपको नहीं गिना। यह भूल केवल वह ऊंट का सवार ही नहीं करता, हर आदमी करता है। वह अपने आपको छोड़कर और सबको गिनता है। उसमें अपने आपको शामिल नहीं करता। हर आदमी सोचता है कि जो जन्म लेता है, वह मरता है। मरते हुए को वह देखता भी है। पर, अपने आपके बारे में विश्वास नहीं होता है कि मैं मरूंगा। अपने आपको अलग कर देता है। यदि मृत्यु की सचाई को कोई देख लेता तो शायद बहुत सारे गलत काम नहीं करता। किंतु मृत्यु को जानता है, यानी मानता है, पर उस सचाई का अनुभव नहीं करता, साक्षात्कार नहीं करता।
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