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सोया मन जग जाए
मुस्कराहट ही निश्चल है, कायम रह सकती है।
ऐसा उत्तर वही व्यक्ति दे सकता है जिसे सत्य का भान हो गया है। यह तभी संभव है जब सोया मन जग जाता है।
इस अन्तश्चेतना को जगाने के लिए चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा अत्यन्त आवश्यक है। जब दर्शनकेन्द्र और आनन्दकेन्द्र जाग जाते हैं तब सारी भावधारा बदल जाती है। देखने का कोण बदल जाता है। सत्य के साक्षात्कार का यह अर्थ नहीं है कि दूर की वस्तुएं देखी जा सकें, दूर के शब्द सुने जा सकें या दूर की घटनाओं का प्रत्यक्षीकरण हो सके। ये सब आज वैज्ञानिक उपकरणों से हो ही रहे हैं। यंत्रों के द्वारा और-और चामत्कारिक कार्य किए जा रहे हैं। किन्तु साक्षात्कार का अर्थ है सुप्त चेतना का जागना। यह यंत्रों से नहीं होता। यह होता है केन्द्रों पर ध्यान करने से। सुप्त मन के जागने का पहला लक्षण है इच्छा का कम होना और दूसरा लक्षण है भय की चंचलता का कम होना। यही है सत्य का साक्षात्कार।
जब मन जाग जाता है तब व्यक्ति बदल जाता है। चिन्तन बदल जाता है और घटनाओं को ग्रहण करने का कोण बदल जाता है।
एक बच्चा सड़क पर खेल रहा था। एक कार आई। बच्चा कार की चपेट में आया और मर गया। वह अपने पिता का इकलौता बेटा था। पुलिस ने ड्राइवर को हिरासत में लिया। केस चला। बच्चे के पिता को गवाही देनी थी। उसने सोचा, मेरा बच्चा मर गया। अब वह पुनः जीवित नहीं होगा। यदि मैं ड्राइवर की भूल बताऊंगा तो इस बचारे को सजा होगी। इसके बच्चे हैं। वे अनाथ हो जाएंगे। मैं उनको अनाथ क्यों करूं? इस विधायक चिन्तन से प्रेरित होकर वह कोर्ट में गया। न्यायाधीश के सामने कहा मेरे बच्चे की भूल थी। वह बिना देखे सड़क पार कर रहा था। कार की चपेट में आया और मर गया। ड्राइवर की कोई भूल नहीं है। केस खारिज हो गया। _क्या हर आदमी ऐसा आचरण कर सकता है? नहीं। प्रत्येक व्यक्ति प्रतिशोध की आग में जल रहा है। कहां से आएगा उसमें ऐसा चिन्तन ? ____ हम ध्यान के माध्यम से सत्य का अवबोध प्राप्त करें, मन को जगाएं और महान् आत्मा बनने या देखने का स्वप्न पूरा करें।
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