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सोया मन जग जाए वह पराक्रम के द्वारा पूरी नहीं होती, तब देवताओं की शरण ली जाती है। कोई भी व्यक्ति देवताओं की मनौती उनके गुणों के कारण नहीं मनाता। उसमें दिव्य गुणों के प्रति कोई आस्था भी नहीं है। मुझे दिव्य बनना है, देवता सदृश बनना है, इस भावना से कोई देवता के पास नहीं जाता, किन्तु स्वार्थ से प्रेरित होकर अपनी निरंकुश इच्छा को पूरी करने के लिए वहां जाता है, उनकी शरण लेता है। बेचारे देवता भी क्या करेंगे? किस-किस की इच्छा पूरी करेंगे? कितनों को संभालेंगे? ___ आज ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आदमी ने आदमी पर भरोसा करना छोड़ दिया, श्रम और पुरुषार्थ पर भरोसा करना छोड़ दिया और पूरा विश्वास देवताओं के चरणों में समर्पित कर डाला। देवताओं के सामने भी समस्या है कि किस-किस की मांग पूरी करे? कहां से करे? कितनी करे? यदि आदमी ने इच्छा पर नियन्त्रण करना नहीं सीखा तो वह दिन दूर नहीं है जब देवता भी मनुष्य को ठुकरा देंगे। संभव है मंदिर के सारे द्वार ही बंद हो जाएं। वे केवल उनके लिए ही खुले रह सकें, जो मंदिर में इच्छापूर्ति के लिए नहीं, आराधना और सद्भावना से आते हैं। कोई भी व्यक्ति देवता के पास इसलिए नहीं जाता कि उसका सोया मन जग जाए, चेतना जागृत हो जाए, दिव्यगुणों की प्राप्ति हो।
जब तक सोए मन को जगाने की बात प्राप्त नहीं होगी, तब तक किसे धर्म मानें? किसे धार्मिक मानें? किसे धर्मगुरु और अध्यात्मचेता मानें? किसे धर्म का देवता मानें? इस प्रश्नों का हमारे पास कोई उत्तर नहीं है। आज लोग साधु-संन्यासियों के पास भी इच्छा-प्रेरित भावना को लेकर आते हैं, इच्छापूर्ति के लिए आते हैं। यह साधुओं के पास आने का धुंधला अर्थ है। यहां आना चाहिए सचाई के साक्षात्कार के लिए जिससे कि इच्छा कम हो, चाह मिटे और सोया मन जग जाए। __ एक साधारण व्यक्ति। गरीब। पर आत्मा अत्यन्त जागृत। इकलौता बेटा। दुर्घटना में दोनों पैर गंवा बैठा। अपंग हो गया। पास-पड़ोस वाले संवेदना प्रगट करने आए। वह मुस्करा रहा था। वे बोले—इतना बड़ा आघात और तुम मुस्करा रहे हो? आजीविका का एक मात्र माध्यम अपंग हो गया, तुम्हें कोई पीड़ा नहीं है? क्या यह मुस्कराने का क्षण है? ऐसे मर्मान्तक क्षणों में भी मुस्कराते रहने का रहस्य क्या है ? ___ वह बोला मेरी मुस्कराहट क्यों गायब हो? मैं क्यों दुःखी बनूं? मैंने दो सूत्र आत्मसात् कर रखे हैं। पहला सूत्र है-धन और संपदा चंचल है। दूसरा है—जीवन क्षणभंगुर है। सारे पदार्थ चंचल और क्षणभंगुर हैं। केवल मेरी
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