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सोया मन जग जाए लगे। शिष्य बोला—यह क्या ? इतनी देर तो आप उस व्यक्ति की गालियां सुनते रहे। मैं जब उसका प्रतिरोध करने लगा तो आप उठकर जाने लगे। गुरु बोले—इतने समय तक मैं एक दिव्य आत्मा के साथ बैठा था। सामने चांडाल था, पर मेरे निकट दिव्य आत्मा थी। पर अब जब दोनों चांडाल हो गए तो मेरा यहां बैठना उचित नहीं है।
दृष्टिकोण बदलता है, यथार्थ का भान होता है तब देवता पुरुष भी चांडाल लगने लगता है। यह सारा दृष्टिकोण का चमत्कार है। हम यह स्पष्ट समझें कि सारा दु:ख दृष्टिकोण से उत्पन्न है। दृष्टिकोण बदलता है तो जगत् बदल जाता है, दुःख सुख में बदल जाता है। दुःख से छुटकारा पाने का पहला चरण है सम्यग् दर्शन । दृष्टिकोण सम्यग् बना कि सारा जगत् सम्यग् बन गया और दृष्टिकोण गलत बना कि सारा जगत् गलत बन गया।
अब मेरा यह स्पष्ट अभिमत बन गया कि ध्यान एक उपाय है दु:ख को मिटाने का। संभव है, आप भी इन्हीं शब्दों में सोचते होंगे।
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