SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. क्या ध्यान उपाय है दु:ख मिटाने का? जिसका जितना मूल्य हो, उसे उतना मूल्य दिया जाए, यह यथार्थ दृष्टिकोण है, सबके हित में है। कम या अतिरिक्त मूल्य देना वांछनीय नहीं है। यह भ्रम पैदा करता है। हमें सोचना है, क्या हम ध्यान को अतिरिक्त मूल्य दे रहे हैं या कम मूल्य दे रहे हैं? ____ ध्यान से सभी दु:ख मिटते हैं, यह भी कहा गया है। क्या यह सही है? क्या ध्यान से सारे दु:ख समाप्त हो सकते हैं? इस पर पुनर्विचार करना है, समीक्षा और मीमांसा करनी है। दु:ख अनेक हैं। उनके अनेक प्रकार हैं। मैंने उनको चार भागों में विभक्त किया है.-१. कल्पनाजनित दु:ख, २. अभावजनित दु:ख, ३. वियोग-जनित दु:ख, ४. परिस्थिति जनित दु:ख। ये चार प्रकार के दु:ख हैं। १. कल्पनाजनित दुःख ___ मनुष्य अपनी कल्पनाओं से अनेक दु:खों की सष्टि कर डालता है। वह दु:खों का ताना-बाना बुनता है और दुःख भोगता चला जाता है। ध्यान के द्वारा इसे समाप्त किया जा सकता है। ध्यान में कल्पना से हटकर निर्विकल्प स्थिति में प्रवेश पाना होता है। वहां कल्पना का संकुचन, संहरण होता है। यही निर्विकल्प स्थिति का अभ्यास है। वहां कल्पनाजनित दु:ख स्वयं कम होने लगते हैं। २. अभावजनित दु:ख ___ कोई व्यक्ति अभाव में जी रहा है। उसके मकान और आजीविका का अभाव है। वह इस अभाव के कारण दु:ख भोगता है। ध्यान इस अभाव को कैसे मिटा पाएगा? यह समझ में नहीं आ सकता। ऐसा कोई तर्क मेरे सामने नहीं है, जिसके आधार पर मैं यह कह सकू कि अभावजनित दु:ख को मिटाने का साधन है ध्यान। किन्तु जब हम गहरे में उतर कर देखते हैं तब प्रकाश-किरण सामने आ उपस्थित होती है। यूआनसीन बहुत बड़ा दार्शनिक था। लू नगर में रहने वाले एक अमीर आदमी सीकुंग उससे मिलना चाहता था। वह अपनी बग्घी में बैठकर चला। आगे गली बहुत संकरी आ गई। बग्घी उसमें से नहीं जा सकती थी। वह वहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy