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क्या मूर्छा को कम किया जा सकता है ?
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सुकरात के पास एक बड़ा जमीदार आया। उसको अपनी जमीन-जायदाद पर गर्व था। बड़ी जमीन थी। वह उसमें अंह पैदा कर रही थी। उसने सुकरात के समक्ष अपने वैभव का बखान किया। कितनी बड़ी जमीन का वह स्वामी है यह बताया। सुकरात सुनते रहे, हंसते रहे, हंसते रहे। जब वह मौन हुआ, तब सुकरात बोले-इस विश्व के नक्शे में हमारे देश की अवस्थिति कहां है? उसने बताई। सुकरात बोले-इतना छोटा देश! अच्छा हमारा नगर कहां है? 'यह रहा हमारा नगर ।' अरे! यह तो एक बिन्दु के समान है सागर के समक्ष! 'अच्छा, अब बताओ इस नगर में तुम्हारी जमीदारी का बिन्दु कितना बड़ा है?' उसने कहा-'दीखती ही नहीं।' सुकरात बोले- इतनी छोटी-सी जमीदारी का इतना बड़ा अहं! क्या यह पागलपन नहीं है?
जमीदार का नशा उतर गया। उसे यथार्थ का पता चल गया। यथार्थ का अवबोध होते ही मनोदशा बदल जाती है और तब व्यक्ति की दिशा परिवर्तित हो जाती है।
ध्यान एक साधन है यथार्थ के अवबोध का। हम ध्यान के प्रयोगों के द्वारा उन सचाइयों तक पहुंचना चाहते हैं जो हमारे भीतर छिपी पड़ी हैं। प्राणशक्ति एक सचाई है। वह हमारे जीवन का संचालन करती है। उस तक हमें पहले पहुंचना है। हमारे जीवन को चलाने वाला कौन है ? क्या अन्न हमारे जीवन को चलाता है? क्या पानी हमारे जीवन को चलाता है? यदि अन्न और पानी हमारे जीवन के संचालक होते तो आज तक कोई नहीं मरता, सब अमर हो जाते। वास्तव में प्राणशक्ति जीवन की संचालिका है। वह है तब तक ही अन्न और पानी काम करते हैं, पोषण देते हैं। जब प्राण चला गया, फिर चाहे अन्न के ढेर पड़े हों या पानी का सागर लहरा रहा हो, उनका जीवन के लिए कोई प्रयोजन है ही नहीं। प्राण महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जब यह सचाई जान ली जाती है यथार्थ में तो अन्न और पानी के प्रति जो सघन मूर्छा है वह टूटने लगती है। शरीर की मूर्छा भी नहीं टिकती। शरीर से परे है प्राण। प्राण को पैदा करने वाली है चेतना। यह प्राण से आगे की सचाई है, अवबोध है।
इसलिए शरीरप्रेक्षा में न चमड़ी को, न मांसपेशियों को, न हड्डियों को और न रक्त को देखना है। हमें प्राण तक पहुंच कर उसके प्रकंपनों को पकड़ना है। यही है वास्तव में शरीर प्रेक्षा। फिर हम उससे आगे बढ़ें और चेतना के प्रकंपनों को पकड़ने को लगे। यहां शरीर-प्रेक्षा की यात्रा संपन्न होगी। यह यात्रा दीर्घ-काल से संपन्न होने वाली है। यह मूर्छा को तोड़ने वाली है।
मूर्छा दो दिशाओं में चलती है। एक है व्यवहार की दिशा और दूसरी है
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