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क्या मूर्छा को कम किया जा सकता है? तैयार करता है और पिता पुत्र को योग्य बनाता है। इन सबके पीछे मूर्छा काम करती है। इसलिए सामाजिक और पारिवारिक वातावरण को सजीव रखने के लिए मूर्छा की अनिवार्यता स्वीकार करनी होगी। सामाजिक व्यक्ति मूर्छा को सर्वथा छोड़ दे, यह असंभव बात है। किन्तु मूर्छा के चक्र-व्यूह को तोड़ना जरूरी है। जब तक उसका चक्र-व्यूह चलता रहेगा, तब तक दुःखों का अन्त नहीं होगा। उसकी एक सीमा हो। वह अनन्त न बने, यह अपेक्षित है। मूर्छा केवल समाज को चलाने वाली कड़ी के रूप में स्वीकृत हो तो इतना अनर्थ नहीं होता। पर आज उसे अनन्त आकाश प्राप्त है। यह अहितकर है। ध्यान का पुष्ट परिणाम है मूर्छा के चक्र का टूटना। ___ मूर्छा की जन्मभूमि है शरीर। यहां सारी मूर्छाएं उत्पन्न होती हैं। शरीर-प्रेक्षा के प्रयोग में केवल शरीर को नहीं देखा जाता। शरीर को क्या देखना है? शरीर के कण-कण में जो मूर्छा का विष भरा पड़ा है, उसे देखना है, निकालना है। यही प्रयोजन है शरीर प्रेक्षा का।
आयुर्वेद और हठयोग के आचार्यों ने पांच प्राण माने हैं-प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान। ये पांच प्राणशक्तियां हैं। प्राण का मुख्य केन्द्र हैनासाग्र। अपान का मुख्य केन्द्र है-नाभि के नीचे का स्थान, पेडु का स्थान। उदान का मुख्य केन्द्र है—होठ और कंठ। समान का मुख्य केन्द्र है हृदय और नाभि। व्यान का स्थान है—पूरा शरीर। वह समूचे शरीर में व्याप्त है। वह पूरी चमड़ी में फैला हुआ है। बाहर का जितना आघात-प्रत्याघात होता है, वह सबसे पहले चमड़ी पर होता है। सर्दी, गर्मी आदि सभी त्वचा को वींधकर भीतर प्रवेश करती हैं। कांटा चुभता है तो पहले चमड़ी को वींधता है। समूची चमड़ी में व्यान प्राण व्याप्त है। वह बाहर से प्रभावित होती है, इसलिए बाहर के प्रभावों को ग्रहण कर लेती है। मूर्छा के संस्कार भी त्वचा में अधिक होते हैं। शरीर प्रेक्षा का अर्थ है कि इस चमड़ी को भेद कर, सारी परतों को चीर कर गहरे में चला जाना। ___ जब हम शरीर में व्याप्त व्यान प्राण को पकड़ेंगे, देखेंगे तब वह प्रभावित होगा और हमारी प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित होगी। यदि हम त्वचा के द्वारा, स्पर्शन इन्द्रिय के द्वारा होने वाले प्रभावों पर नियन्त्रण करते हैं तो मूर्छा का पहला किला टूट जाता है। ___ मेडिकल साइन्स के अनुसार त्वचा अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य संपादित करती है। वह शरीर की मुख्य घटक है। हमारी दृष्टि में त्वचागत जो व्यान प्राणशक्ति है वह बहुत मूल्यवान् है। उस पर नियन्त्रण होने से मूर्छाओं से
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