SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोया मन जग जाए पालन-पोषण में इतना कष्ट सहती है। क्यों? मूर्छा है इसीलिए। पशु-पक्षियों की माताएं भी बच्चों के लिए, अपनी सन्तान के लिए क्या नहीं सहती? मूर्छा के कारण सारा कष्ट सह लिया जाता है। इस दृष्टि से सामाजिक प्राणी के लिए यह नहीं कहा जा सकता कि मूर्छा सर्वथा हेय है। वह छोड़ भी नहीं सकता। जो कुछ एक दूसरे के लिए होता है या किया जाता है वह सारा मूर्छा और मोह के कारण ही हो रहा है। मोह नहीं होता तो कौन पढ़ाता बच्चों को? कौन उन्हें तैयार करता? कौन उन्हें व्यवसाय सिखाता? फिर तो सब अकेले होते। सब विरागी या विरक्त होते। अकेला आदमी विरागी बनकर जीवन यापन कर सकता है, पर समाज वैसा नहीं कर सकता। संसार ऐसा बन नहीं सकता। यदि संसार ऐसा होता है तो वह फिर संसार नहीं, व्यक्ति होगा। आदमी अनगिन कष्टों को सहता हुआ भी जी रहा है। इसका मुख्य कारण है—मूर्छा। मूर्छा में हजारों कष्ट सहे जा सकते हैं, अन्यथा नहीं। ___ कभी-कभी लोग कहते हैं, साधु-संन्यासी बहुत कष्ट सहते हैं। मैं इससे उल्टा सोचता हूं। साधुओं के लिए कष्ट कम हैं। गृहस्थ के लिए कष्टों का अंबार-सा लगा हुआ है। वह मूर्छा से घिरा हुआ है, इसलिए उसे ये कष्ट कष्ट जैसे प्रतीत नहीं होते। मूर्छा एक आवरण है। ऐसा आवरण कि जिसमें सारे कष्ट ढक जाते ___ पति ने पत्नी को या पत्नी ने पति को तलाक दे दिया। पति चल बसा। पत्नी रह गई। पत्नी मर गई। पति रह गया। दोनों मर गए। छोटे-छोटे बच्चे रह गए। ये सारी कितनी कठिन परिस्थितियां हैं? दिल दहलाने वाली स्थितियां हैं। इन स्थितियों में भी आदमी सुख मानकर जीता ही चला जा रहा है। एक छोटे बच्चे से भी पूछा जाए कि तुम्हारे माता-पिता मर गए। तुम असहाय हो। क्या साधु बनोगे? तत्काल सिर हिला कर कहेगा, साधु तो नहीं बनूंगा। इसका कारण है मूर्छा। उसे लगता ही नहीं कि वह असहाय है। एक मूर्छा हजारों कष्टों को शांत कर देती है, उनका निवारण कर देती है। यदि ऐसा नहीं होता तो इस दु:खमय, कष्टमय और दारुण संसार में आदमी कभी जी नहीं पाता। उसको जीवित रखने वाली वस्तु है मूर्छा। यह सबको जिला रही है। सब प्राणी इसके बदौलत जी रहे हैं। बड़ा भाई छोटे भाई को, पिता पुत्र को तैयार करता है। आगे चलकर छोटा भाई बड़ा भाई को दर-दर का भिखारी बना देता है, पुत्र पिता को घर से निकाल देता है। ऐसी स्थितियां होती हैं। हम देखते हैं। पर बड़ा भाई छोटे भाई को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy