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क्या मूड पर अंकुश लगाया जा सकता है?
किया क्योंकि इसे मान्य करने पर उसकी सारी सुविधाएं समाप्त हो जाती हैं। यह सिद्धान्त उसकी सुविधावादी मनोवृत्ति पर करारा प्रहार था। आदमी ने इसे अमान्य कर डाला और सुविधाओं को बढ़ाता चला गया।
आज सरकार चिल्ला रही है कि गरीबी की समस्या है। समस्या गरीबी की नहीं, समस्या है सुविधाओं में खर्च होने वाले अपव्यय की। आदमी साज-सज्जा और सुविधा के साधन जुटाने में लाखों-करोड़ों का व्यय कर रहा है। कहां है गरीबी? क्या गरीब ऐसा कर सकता है? जब तक सुविधावादी दृष्टिकोण नहीं बदलेगा, तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। __आज वातानुकूलित की प्रथा अधिक चल पड़ी है। मकान ही नहीं, कार भी वातानुकूलित होनी चाहिए। लोगों ने सोचा, सर्दी और गर्मी दोनों से बचाव होगा, पर यह नहीं सोचा कि यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। प्रकृति का नियम है कि आदमी को सर्दी भी लगे और गर्मी भी लगे। दोनों आवश्यक हैं। यदि ऐसा नहीं होगा तो शरीर निकम्मा और ढीला हो जाएगा। ___ एक अमेरिकन निरन्तर वातानुकूलन में रहता। बीमार हो गया। डाक्टरों का इलाज व्यर्थ गया। एक नेचरोपेथी चिकित्सक के पास पाया। उसने गर्म पानी के टब में तीन घंटा प्रतिदिन बैठने की सलाह दी। उसने वैसा ही किया और स्वस्थ हो गया। अब वह पूरा दिन वातानुकूलन में बिताता और तीन घंटा गर्म पानी के टब में। एक दिन उसने सोचा, यह तो मूर्खता है। मैं क्यों ऐसा करूं? उसने वातानुकूलन के सभी साधन बन्द कर दिये तो गर्म पानी में बैठने की आवश्यकता भी नहीं रही।
आज के सारे सुविधा-साधन प्रकृति के विरुद्ध हैं। हमारे लिए धूप और हवा आवश्यक है। पर वह आज के मकानों में सुलभ नहीं है। हवा भी कृत्रिम साधनों से लाई जाती है। इससे शरीर ही नहीं बिगड़ा है, आदमी की मनोदशा भी बिगड़ी है। मूड बिगड़ने लगा है।
सहिष्णुता की शक्ति को बढ़ाने के लिए आसनों का प्रयोग भी कारगर होता है। कुछेक मानते हैं कि ध्यान की साधना में आसनों की कोई जरूरत नहीं है। यह एकांगी दृष्टिकोण है। ध्यान के द्वारा मन की एकाग्रता तो सधती है, किन्तु सहन करने की शक्ति का विकास उससे नहीं होता। सहन करने के लिए शरीर को पहले तैयार करना होता है। शरीर तैयार होता है आसनों से। जब तक शरीर नहीं सधता तब तक ध्यान भी पूरे ढंग से नहीं होता। ध्यान के लिए सबसे पहली आवश्यकता है कार्यसिद्धि की। ध्यान है मन:सिद्धि, मानसिक सिद्धि, चैतसिक सिद्धि। शरीर की सिद्धि हुए बिना यह नहीं सधती। शरीर
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