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क्या मूड पर अंकुश लगाया जा सकता है ?
'नहीं नहीं, असंज्ञी ।'
'किस न्याय से?'
'नहीं, नहीं, दोनों।'
'किस न्याय से ?'
'नहीं, नहीं, दोनों नहीं ।'
'किस न्यास से ? "
वह उत्तेजित होकर बोला- न्याय, न्याय करते खोपड़ी खा ली। लो, इस न्याय से कहता हुआ वह आचार्य भिक्षु की छाती में जोर से मुक्का मार कर चलता बना। आचार्य भिक्षु उसी प्रसन्न मुद्रा में उसको जाते हुए देखते रहे।
जिनके चन्द्रस्वर सध जाता है, उनका मूड कभी खराब नहीं किया जा सकता। किसी में यह शक्ति नहीं होती कि उनके मूड को बिगाड़ सके ।
सिकन्दर आया संन्यासी के पास । बहुत तेज था संन्यासी में । सिकन्दर आकर बोला——आप मेरे देश में चलें । मुझे आप जैसे संन्यासी की जरूरत है । संन्यासी बोला—मैं नहीं चल सकता। मुझे क्या लेना-देना है तुम्हारे देश से ? सिकन्दर ने समझाया। संन्यासी नहीं माना। डराया धमकाया । पर सब व्यर्थ । सिकन्दर बोला- मेरी आज्ञा की अवहेलना का परिणाम है मृत्यु । संन्यासी बोला - किसे मारोगे? मैं तो मरा हुआ ही हूं । चले जाओ यहां से। सूरज की जो धूप आ रही है, उसे मत रोको 1
जिन व्यक्तियों ने अपनी अन्तरात्मा की आवाज को सुना है, समझा है, जिन्होंने मस्तिष्क के दाएं पटल को जागृत कर डाला है, उनके मूड को कोई विकृत नहीं कर सकता । आज के
में
युग में बांया पटल अधिक सक्रिय है और दायां सुषुप्त है। दोनों सन्तुलन अपेक्षित है। यह सन्तुलन समवृत्ति श्वास- प्रेक्षा से साधा जा सकता है। यह अंकुश - शक्ति है । जैसे हाथी के नियन्त्रण के लिए अंकुश, घोड़े के लिए लगाम होती है, वैसे ही समवृत्ति श्वास- प्रेक्षा इन दोनों पटलों के सन्तुलन के लिए नियन्त्रणकारी है । यह नियन्त्रणकारी शक्ति हमारे हाथ में होनी चाहिए । अन्यथा मूड बार- बार बिगड़ेगा ।
आज का समूचा परिवेश मनोदशा को उत्तेजित करने वाला और बिगाड़ने वाला है। आदमी की सहनशक्ति कम हुई है और इसका कारण है । सुविधावादी मनोवृत्ति । इस वृत्ति ने सहन करने की जो प्राकृतिक क्षमताएं थीं, उन्हें नष्ट कर डाला। आज आदमी सर्दी-गर्मी सहन नहीं कर सकता । सुविधाओं को भोगते-भोगते वह उनके वशवर्ती हो गया । सहनशक्ति चुक गई है।
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