________________
26
सोया मन जग जाए के साथ मैत्री करनी है, किसी को अपनी बात से सहमत करना है, किसी को कोई बात जचानी है तो यह सारा कार्य चन्द्रस्वर में निष्पन्न होना चाहिए। उस समय मूड शांत रहता है। उसी स्थिति में सामने वाले पर प्रभाव पड़ सकता है। अन्यथा सामने वाला व्यक्ति बात सुनते ही उत्तेजित हो जाएगा। बात बिगड़ जाएगी। स्वयं का मूड और सामने वाले व्यक्ति का मूड-दोनों को स्वर के साथ मिलाया जाता है। बात बन जाती है।
कोई व्यक्ति यदि चन्द्रस्वर में कठोर कर्म, वाद-विवाद आदि करने जाता है तो पहले ही क्षण में हार जाता है। कठोर कर्म सूर्यस्वर में ही सफल हो सकते हैं। जब दायां स्वर-सूर्यस्वर चलता है तब बांया पटल सक्रिय होता है। उस समय तर्कशक्ति का विकास होता है। उस समय होने वाले तर्क-वितर्क में सूर्यस्वर वाला व्यक्ति जीत जाएगा। यदि चन्द्रस्वर में वह वाद-विवाद चलता है तो उसकी हार निश्चित है। लड़ना, झगड़ना, संघर्ष करना और विवाद करना ये सारे कठोर धर्म हैं। इनको सूर्यस्वर में ही किया जाता है।
साधु-संत चन्द्रस्वर को विकसित करते हैं। उन्हें उत्तेजित करना सरल नहीं होता। ऐसे संत हुए हैं जिन्हें हजार प्रयत्न करने पर भी उत्तेजित नहीं किया जा सका।
एकनाथ महाराष्ट्र के पहुंचे हुए संत थे। एक व्यक्ति ने यह बीड़ा उठाया कि वह एकनाथ को उत्तेजित कर देगा। संत एकनाथ साधना में बैठे थे। वह आदमी वहां पहुंचा और उनकी पीठ पर जा बैठा। वह पीठ पर बैठा ही नहीं, चूंसा मारने लगा। एकनाथ ने मुड़कर देखा और हंसकर कहा—'अरे! तुम्हारे जैसा मित्र तो मुझे आज तक नहीं मिला। आज तक जो भी मित्र आते वे सामने से आकर मिलते। तुम पीछे से आकर मित्रता करने वाले पहले व्यक्ति हो। मेरी पीठ में दर्द है। उस पर भी चोट कर तुम ठीक कर रहे हो।' उस व्यक्ति ने सुना। शरमा गया। पीठ से उतर चरणों में आ गिरा। संत एकनाथ ने चन्द्रस्वर सिद्ध कर लिया था। ___ आचार्य भिक्षु का भी चन्द्रस्वर बहुत प्रबल था, ऐसा अनेक घटनाओं से अनुभव होता है। एक व्यक्ति ने आकर आचार्य भिक्षु से कहा—'आप ज्ञानी हैं। मुझसे कोई तत्त्वज्ञान पूछिए।' भिक्षु बोले तत्त्वज्ञान की बात रहने दो। ऐसे ही औपचारिक बात करो। उसने कहा नहीं, तत्त्व के विषय में पूछिए। भिक्षु बोले—तुम संज्ञी हो या असंज्ञी अर्थात् मन वाले हो या अमन वाले?
उसके कहा—संज्ञी। भिक्षु– किस न्याय से?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org