________________
३. क्या मूड पर अंकुश लगाया जा सकता है?
___ मनुष्य एकरूप नहीं होता। वह बदलता रहता है। उसके भाव बदलते हैं, मन बदलता है, मनोदशाएं बदलती हैं और मूड बदलता है। आज यह मूड शब्द बहुत प्रचलित है। हर आदमी दूसरे का मूड देखकर ही बातचीत करना चाहता है। मूड का अर्थ है मनोदशा। भाव के साथ-साथ मनोदशाएं बदलती हैं, मुद्राएं बदलती हैं। कोई भी आदमी कभी एकरूप नहीं मिलता। प्रात:काल प्रसन्न मुद्रा में है तो मध्यान्ह में क्रुद्ध मिलेगा। प्रात:काल यदि शांत है तो सायंकाल भीषण ज्वार-भाटे में मिलेगा। कहा नहीं जा सकता कि आदमी कब कैसा बन जाए। इसलिए सोचना पड़ता है कि किस आदमी से कब काम लिया जाए। जब वह प्रसन्न मुद्रा में होता है तो बड़े से बड़ा काम सहजता से हो जाता है और जब वह अप्रसन्न मुद्रा या मूड में होता है तो आसान काम भी पहाड़ बन जाता है।
प्रश्न है कि आदमी क्यों बदलता है? मनोदशा क्यों बदलती है? कारण क्या है? कारण पर हम विचार करें। वह कारण बाहर नहीं है, अपने ही भीतर है। समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा मूड पर अंकुश लगाने का प्रयोग है। हम जो श्वास लेते हैं, वह दो भागों में बंटा हुआ है। हम कभी बाएं नथुने से और कभी दाएं नथुने से श्वास लेते हैं। कभी दायां स्वर चलता है, कभी बायां स्वर चलता है और कभी दोनों साथ-साथ चलते हैं। स्वरोदय की भाषा में बाएं स्वर को चन्द्रस्वर और दाएं स्वर को सूर्यस्वर कहा जाता है। जब दोनों स्वर साथ चलते हैं तब उसे सुषुम्ना स्वर कहा जाता है। ये तीन स्वर हैं। श्वास और स्वर का संबन्ध मस्तिष्क से है। जब बायां स्वर चलता है तब दायां पटल सक्रिय होता है। हमारा मस्तिष्क दो गोलार्थों में विभक्त है—दायां और बायां। दोनों का अलग-अलग कार्य है। आज इस विषय में बहुत अनुसंधान हुए हैं।
स्वरोदय में यह विवेचित हुआ है कि कौन से स्वर में कौन-सा कार्य करना चाहिए। कार्य दो भागों में विभक्त है—चल कार्य और स्थिर कार्य । सौम्य कार्य और क्रूर कार्य। जब चन्द्रस्वर चलता है तब सौम्य कार्य करना चाहिए। सौम्य और शांत कार्य उसी में सफल होते हैं। यह बहुत वैज्ञानिक चिन्तन है। जब चन्द्रस्वर चलता है तब मस्तिष्क का दायां पटल सक्रिय होता है। दायां पटल सौम्य और शांत कार्य के लिए उत्तरदायी है। स्वरविद्या का विशेषज्ञ व्यक्ति निरन्तर अपने स्वरों की जानकारी करता रहता है। वह जानता है कि किसी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org