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सोया मन जग जाए जब तक शरीर के ममत्व के त्याग की बात नहीं आएगी, सही अर्थ में कायोत्सर्ग नहीं सधेगा। वह नहीं सधेगा तो परिग्रह की पकड़ ढीली नहीं होगी। और जब तक परिग्रह की पकड़ रहेगी भाव-परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारम्भ ही नहीं होगी। और जब तक भाव-परिवर्तन घटित नहीं होगा, दु:ख से छुटकारा नहीं मिलेगा। हम इसे यों समझें। दु:ख को कम करना है तो भाव-परिवर्तन करना होगा। भाव-परिवर्तन करना है तो परिग्रह की जड़ पर प्रहार करना होगा। उस पर प्रहार करने के लिए कायोत्सर्ग सीखना होगा।
ध्यान का प्रयोग केवल मानसिक तनाव को मिटाने के लिए नहीं है। यह है भाव-परिवर्तन और दु:ख की जड़ पर प्रहार करने के लिए। यही ध्यान का सही उद्देश्य है। जब उस पर प्रहार होगा तो शारीरिक बीमारियां, मानसिक उलझनें और भावनात्मक समस्याएं सुलझेंगी। हम अपने भावों की निर्मलता के लिए, उन्हें सहज-सरल बनाने के लिए, कायोत्सर्ग का प्रयोग करें और उसके द्वारा दुःख की जड़ पर प्रहार करें। यह प्रहार मूल्यवान् होगा। यह ऐसा प्रहार होगा जिसे ध्यान न करने वाला कभी समझ ही नहीं पाएगा। ध्यान न करने वाला भी दु:खों से मुक्ति चाहता है, पर वह दु:ख की जड़ पर प्रहार करना नहीं जानता। ध्यान करने वाला इस बात पर अधिक एकाग्र होता है कि दु:ख की जड़ क्या है? दु:ख का उत्स कौन-सा है?
यदि हम दु:ख की जड़ को पकड़ कर उस पर प्रहार करना सीख जाएं तो फिर संसार में दुःख भी हमारे लिए दु:ख नहीं होगा। एक नए संसार का निर्माण होगा और इस निर्माण में प्रेक्षाध्यान का प्रयोग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होगा।
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