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________________ ३४. क्या जीवन-शैली को बदलना जरूरी है ? आज का युग समाजवादी युग है। बहुत लम्बी अवधि से आदमी समाज का अंग बनकर जीता रहा है, किन्तु इस युग में समाजवादी अवधारणा बहुत विकसित हुई है। इसीलिए हर व्यक्ति समाज का अंग बनकर जीने की धुन में है। वह अपनी बात कम सोचता है, समाज की बात अधिक सोचता है। वह समाज की भलाई और समाज के उत्थान के विषय में ज्यादा चिंतन करता है। वह उसके लिए कुछ प्रयत्न करे या ना करे, यह अलग प्रश्न है, पर आदमी के सामने समाज का ही वाद रहता है। इस अवधारणा के कारण युग में जीवन की शैली बदल गई है। जीवन की तीन शैलियां हैं१. व्यक्ति समाज में रहता है, समाज में जीता है। २. व्यक्ति अकेले में रहता है, समाज में जीता है। ३. व्यक्ति अकेले में रहता है, अकेले में जीता है। पहली शैली समाज को अस्वस्थ बनाती है और व्यक्ति भी अस्वस्थ रहता है। यह जीवन की शैली आज चल रही है। यह स्वास्थ्यप्रद नहीं है। यह उलझनें पैदा कर रही है। जब व्यक्ति समाज में जीता है तो यह निश्चित है कि वह उससे भिन्न होकर जी नहीं सकता। मछली पानी में जीती है। वह पानी से बाहर आकर जी नहीं सकती। इसी प्रकार समाज से अलग होकर व्यक्ति जी नहीं सकता। समाज में रहना एक बात है और समाज में जीना बिल्कुल दूसरी बात है। वह समाज में रहता है, उस स्थिति में कि सारे दरवाजे खुले हैं, सारी खिड़कियां खुली हैं। कोई रोक-टोक नहीं है। बड़ी समस्या हो गई। जब सारे दरवाज खुले हैं और बाहर प्रदूषण है तो उन दरवाजों से धूआं भी आएगा। गंदगी भी आएगी, गंदी हवा भी आएगी। इस स्थिति में कम से कम इतनी जागरूकता और सावधानी तो बरतनी चाहिए कि समय-समय पर दरवाजों और खिड़कियों को बन्द कर सके। पर आज यह नहीं हो रहा है। प्रश्न है क्यों? इसलिए कि आदमी ने समाज को सर्वात्मना स्वीकार कर लिया है। उसने अपनी वैयक्तिकता को भुला दिया है। वैयक्तिकता का अपना मूल्य होता है। आदमी कोरा सामाजिक नहीं है। उसमें अपनी वैयक्तिकता भी है। जब वैयक्तिकता की खिड़कियां बन्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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