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क्या कष्ट सहना जरूरी है ?
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पूछा तुम्हें आने में कठिनाई होती है, फिर क्यों आते हो? अपने घर पर ही क्यों नहीं रह जाते? वह वृद्ध बोला-'जब मैं घर से पंडाल की ओर प्रस्थान करता हूं तब मन में इतना आनन्द भर जाता है कि मैं घर में रह ही नहीं सकता। जब मैं आता हूं तब मैं प्रसन्नता से भर जाता हूं। जब प्रवचन सुनता हूं तो प्रफुल्लित हो जाता हूं, सारा कष्ट भूल जाता हूं।' आदमी कष्ट सहता है जब सुख का विकल्प उसके सामने हो। जिसके सामने यह नहीं होता वह कष्ट में टूट जाता है। जब भीतर में आनन्द उमड़ता है, स्फूर्ति उभरती है, तब बड़े से बड़े कष्ट को झेलने में प्रसन्नता होती है। यह बड़े मजे की बात है। कष्ट को अकिंचित्कर बनाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि भीतर के आनन्द को जागृत कर लेना । कष्टो को झेले बिना कोई प्राणवान् नहीं होता और भीतर के आनन्द को जगाए बिना कोई कष्टों को झेल नहीं सकता। __ हम प्रेक्षाध्यान के विभिन्न प्रयोगों-दीर्घ श्वास प्रेक्षा, अन्तर्यात्रा, चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा आदि का सहारा लेकर इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। जो व्यक्ति इन प्रयोगों से अपने आपको भावित कर लेता है, वह शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कष्टों को सहने में अपनी क्षमता को बढ़ा लेता है और अपने चारों ओर ऐसा कवच तैयार कर लेता है कि फिर छोटा हो या बड़ा, किसी भी कष्ट का संवेदन उसके भीतर प्रवेश नहीं कर पाता। प्रेक्षा के प्रयोग बाहर से अप्रभावित रहने की क्षमता को विकसित करने वाले प्रयोग हैं।
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