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सोया मन जग जाए सकने के कारण आत्मघात कर लेते हैं। कुछेक व्यक्ति परिस्थितियों की मार को सहने में अक्षम होकर मरने की बात सोच लेते हैं। इस आत्म-घात का मूल हेतु है कष्टों को न सह पाना।
चौथा परिणाम है—अधीरता। जो कष्ट सहना नहीं जानता, वह बात-बात में अधीर हो जाता है। सामान्य-सी प्रतिकूलता उसे अधीर बना डालती है। अधति उसका पीछा नहीं छोड़ती।
ये सारी समस्याएं या दु:ख कष्टों को न सहने के कारण उत्पन्न होते हैं। इनको दो भागों में विभक्त किया जा सकता है शारीरिक द:ख और मानसिक
दु:ख।
___ कुछ व्यक्ति शारीरिक कष्ट सह लेते हैं, पर मानसिक कष्ट या दुःख में अधीर हो जाते हैं, घुटने टेक देते हैं। थोड़े से मानसिक कष्ट में वे टूट जाते हैं। कुछ व्यक्ति मानसिक दुविधाओं को सहने में सक्षम होते हैं, पर शारीरिक कष्टों में घबरा जाते हैं। हाय रे, मरा रे, कहने लग जाते हैं। हमें ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण करना है जो शारीरिक कष्टों को झेल सके और मानसिक व्यथाओं को भी झेल सके।
प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कष्ट-सहिष्णुता की क्षमता को वृद्धिंगत करने का प्रयोग है। प्रतिदिन के अभ्यास से आदमी शारीरिक और मानसिक कष्टों को सहने में सक्षम हो जाता है। हमारे स्नायुओं और मांसपेशियों को अभ्यास चाहिए। जब उन्हें कष्ट सहने में अभ्यस्त कर दिया जाता है, तब वे कष्ट आने पर पीछे नहीं हटते। वे व्यक्ति को सहयोग देते हैं कष्ट सहने में।
कुछ करना है या कुछ बनना है तो कष्ट झेलने ही पड़ेंगे। शरीर के कष्टों को झेलना है तो मानसिक कष्टों को भी झेलना है। मानसिक कष्ट होता है स्वयं का अपमान होने पर या दूसरे का सम्मान होने पर। दूसरों से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी भयंकर कष्ट होता है। सम्मान किसी का होता है और कष्ट कोई और ही भोगता है। विचित्र है यह संसार! मनुष्य दुर्बल हो गया है कि वह हर बात से प्रभावित हो जाता है।
जब तक हमारे भीतर आनन्द या सुख का स्रोत प्रगट नहीं हो जाता तब तक इन द्वन्द्वों से, कष्टों से छुटकारा पाना मुश्किल है। आनन्द में ओत-प्रोत होकर ही आदमी कष्ट को झेल सकता है। ___ लाडनूं में एक बूढ़ा भाई प्रतिदिन प्रवचन सुनने आता था। वह अत्यन्त वृद्ध, अशक्त और दुर्बल था। उसका निवास-स्थान जैन विश्व भारती से बहुत दूर था। मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि इतने कष्ट झेलकर यह क्यों आता है ? मैंने
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