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क्या कष्ट सहना जरूरी है ?
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एक राजा ने पूछा-परमात्मा कब हंसता है । सभी उलझ गए। मंत्री भी इसका उत्तर नहीं दे पाया। राजा ने कहा——–तीन दिन के भीतर इसका उत्तर दो, अन्यथा मेरे राज्य से निकल जाओ। मंत्री उदास हो घर गया । छोटा लड़का हुशियार था । उसने उदासी का कारण जानकर कहा — इसका उत्तर मैं दूंगा । मंत्री अपने इस छोटे लड़के को लेकर राजा के पास गया। आज तीसरा दिन था। राजा ने लड़के से पूछा- 'बोलो बच्चे ! परमात्मा कब हंसता है ?' लड़का सहजता से बोला — क्या आप इतना भी नहीं जानते? परमात्मा सृजनहार है । उसी ने आदमी को बनाया है और वही आदमी को मारता है, ऐसा सब लोग मानते हैं। पर जब राजा यह सोचता है कि मैं प्रजा का पालक हूं, मैं आदमियों को जिलाता हूं, तब परमात्मा हंसता है ।
हम सब मिथ्या मान्यताओं और धारणाओं से बचें और अपनी सीमा से अधिक दायित्व का बोझ न ढोएं। अन्यथा जैसे मकड़ी अपने बनाए जाल में फंस जाती है, निकल नहीं पाती, वैसे ही आदमी अपनी मान्यताओं के जाल में फंसकर कभी निकल नहीं पाएगा ।
मिथ्या मान्यताएं मानसिक कष्ट पैदा करती हैं। मानसिक कष्टों को सहना जटिल होता है । कष्ट सहने की अक्षमता हीनभावना को जन्म देती है और उसकी अंतिम परिणति है आत्म-हत्या । यह 'इन्फिरियोरिटी काम्प्लेक्स' आदमी में अनेक समस्याएं पैदा करती है और उसकी क्षमताओं को न्यून कर देती है 1
दूसरा परिणाम है— निराशा । जिसकी प्राणशक्ति क्षीण है वह व्यक्ति कष्टों को सहने की अक्षमता के कारण बार-बार निराश होता रहता है । थोड़ी-सी असफलता पर वह निराश हो जाता है। निराशा जीवन की बहुत बड़ी बाधा है ।
आचार्य श्री कभी निराश नहीं होते। उनके सामने भी समस्याएं आती हैं, असफलताएं आती हैं, भंयकर परिस्थितियां आती हैं, पर आप कभी निराश नहीं होते। एक बार किसी एक बात को लेकर जन-साधारण ने आचार्य श्री के विरुद्ध आवाज उठाई। वह आवाज आन्दोलन बन गई। भयंकर तूफान खड़ा हो गया । आचार्य श्री के उपासकों ने कहा- 'आपने जनता के लिए इतना किया, बहुत कुछ किया, पर जनता कृतघ्न है। अब आपको अणुव्रत आन्दोलन बन्द कर देना चाहिए ।' आचार्य श्री ने मुस्कारा कर कहा—— - मुझे लगता है, अणुव्रत आन्दोलन को और अधिक तीव्र गति से चलाना चाहिए।' यह बात वही आदमी कह सकता है। जो प्राणवान् है, आशावान् है । जो कहता है, यह प्रयत्न बन्द कर दो, वह निष्प्राण व्यक्ति है, निराशावान् है ।
तीसरा परिणाम है— आत्म हत्या । कुछेक व्यक्ति रोग की पीड़ा को न सह
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