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________________ क्या जीवन-शैली को बदलना जरूरी है ? 243 नहीं होती तब प्रदूषण आये बिना रह नहीं सकता। ब्रह्मा ने आदमी को गठरियां दीं। एक गठरी में दूसरों की बुराइयां थीं और दूसरी गठरी में उस आदमी की स्वयं की बुराइयां थी। ब्रह्मा ने निर्देश दिया कि जिस गठरी में दूसरों की बुराइयां हैं, उस गठरी को पीछे पीठ पर बांध लो और जिसमें स्वयं की बुराइयां हैं, उस गठरी को आगे बांध लो। आदमी ने सुना। बांध ते समय भूल हो गई। उसने पीठ पर बांधी जाने वाली गठरी को आगे और आगे बांधी जाने वाली गठरी को पीछे बांध लिया भूल हो गई। इसलिए वह दूसरों की भूलों को अधिक देखता है, स्वयं की भूलें उसकी दृष्टि में ही नहीं आतीं। जो व्यक्ति अपनी वैयक्तिकता को भूल कर केवल समाज में रहता है वह व्यक्ति की भूलें देखता रहता है। वह कहता है, प्रशासन खराब है, वकील और जज खराब हैं, अध्यापक और व्यापारी बेईमान हैं, राज्यकर्मचारी कामचोर हैं, खराब हैं, विद्यार्थी उदंड और अनुशासनहीन हैं, श्रमिक खराब हैं, सर्वत्र भाई-भतीजावाद है। उसे कहीं अच्छाई नहीं दीख पड़ती। वह स्वयं अपने को छोड़कर किसी को अच्छा नहीं मानता। ऐसा इसलिए होता है कि वह अकेले में जीना नहीं जानता, अकेले में रहना भी नहीं जानता। वह समाज. या समूह में रहना मात्र जानता है। उसकी सारी दृष्टि समाज को देखती है। वह अपने दरवाना और खिड़कियों को बंद करना नहीं जानता। वह केवल दूसरों को ही देखता है। जब दसरों को या समाज को ही देखेगा तो स्वाभाविक है कि ऐसी १ पारणा बनेगी ही। समाज में जीने वाला कोई भी व्यक्ति परिपूर्ण नहीं होता। ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसमें खामियां या त्रुटियां मिलेंगी। जब ध्यान त्रुटियों की ओर जाएगा तो व्यक्ति का दृष्टिकोण निश्चित ही नकारात्मक बनेगा। नेगेटिव एटिट्युट बने बिना नहीं रहेगा। उस स्थिति में यह चक्र बनेगा कि प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे को खराब समझेगा। एक धनी दूसरे धनी व्यक्ति को बुरा समझेगा। कोई किसी पर विश्वास नहीं करेगा, अच्छा नहीं बताएगा। __ इस स्थिति में समाज एक दुश्चक्र में फंस जाता है और जीवन शैली बोझिल बन जाती है। आज जीवन शैली अत्यन्त बोझिल हो गई है। पुरानी भाषा में कहा जा सकता है हाथी रो भार गधा लदिया हाथी उठा सके इतना भार बेचारे गट ो पर लाद दिया। गधा कैसे उठा पाएगा? जीवन शैली पर इतना भार आ गया कि व्यक्ति तनाव का जीवन जी रहा है। वह अनेक मनोकायिक बीमारियों को भोग रहा है। उसकी असहिष्णुता और उतावलापन सीमातीत हो गया है। बैलगाड़ी के युग से स्पुतनिक के युग में जो गति की तीव्रता का विकास हुआ है, यह केवल वाहनों में ही नहीं हुआ है, मनुष्य के चिन्तन में भी इतनी तीव्रता आ गई है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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