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________________ 234 सोया मन जग जाए आवेश पर नियंत्रण, मन और विचारों पर नियंत्रण यह अभ्यास-साक्षेप है। इच्छा-चालित प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने के लिए ध्यान जैसे महान् प्रयत्न की कोई आवश्यकता नहीं है। समाज में रहने वाला, कुछ जानने-समझने वाला व्यक्ति अपनी शिष्टता को बनाए रखने के लिए उन पर स्वत: नियंत्रण साध लेता है। आवेश, मन और विचार—इन तीनों पर नियंत्रण करना ध्यान का महान् उद्देश्य है। जो इस दिशा में अभ्यास करता है वह अपनी साधना में सफल होकर जीवन को आनन्दमय, सुखमय और शक्तिमय कर लेता है। अब हम इन तथ्यों को घटनाओं के माध्यम से और अधिक स्पष्ट करें। एक मुर्गी प्रतिदिन एक सोने का अंडा देती थी। गृहस्थी का काम सहजता से चलता जाता था। किन्तु व्यक्ति आवेश पर नियंत्रण नहीं कर सका। लालचवश सीमा को पार कर गया। उसने मुर्गी को इसलिए मार डाला कि सारे अंडे एक साथ मिल जाएं। मिला एक भी नहीं। प्रतिदिन का लाभ भी समाप्त हो गया। यह मूर्खता तो है, पर यह है आवेश या भाव-प्रेरित मूर्खता। किसान अपने खेत में रहता था। वहां सर्प की एक बांबी थी। एक दिन किसान ने पूजा कर बांबी के पास दूध से भरा कटोरा रखा। सर्प बांबी से निकला, दूध पिया और एक स्वर्ण मुद्रा कटोरे में डाल कर चला गया। किसान ने देखा। अब वह प्रतिदिन बांबी के पास दूध का कटोरा रखता है, सांप आता है, दूध पीकर एक स्वर्ण मुद्रा कटोरे में डाल कर चला जाता है। किसान का लोभ उद्दीप्त हुआ। प्रतिदिन के होने वाले लाभ ने उसे लोभाकुल बना डाला। उसने सोचा, रोज दूध पिलाना पड़ता है। यह सांप बांबी में से रोज एक स्वर्ण मुद्रा लाता है तो संभव है इस बांबी में स्वर्णमुद्राओं का ढेर हो। क्यों नहीं सर्प को मारकर सारी स्वर्ण मुद्राएं एक साथ ले लूं। यह सोच, दूसरे दिन ज्यों ही सांप दूध | पीने आया, किसान ने उस पर प्रहार किया। सांप शक्तिशाली था। उसने प्रहार को टाल दिया और किसान पर प्रति-प्रहार कर उसे मार डाला। यह मृत्यु आवेश द्वारा प्रेरित मृत्यु है। इच्छा और आवेश पर नियंत्रण करना साधक के लिए भी कठिन काम है। जब साधक पूर्ण जागरूक नहीं होता, जब इच्छा और आकांक्षा जागती है तब बड़े-बड़े साधकों के समक्ष भी समस्या खड़ी हो जाती है। वे आवेश कहीं कोनों में छुपे रह जाते हैं और निमित्त मिलने पर जाग जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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