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क्या आत्म-नियंत्रण जरूरी है ? प्रवृत्तियों के नियंत्रण का बहुत बड़ा हेतु है शिष्टता।
स्वत:-चालित प्रवृत्तियों पर नियंत्रण हर कोई नहीं कर सकता। इस नियंत्रण का उद्देश्य है अन्तर्निहित शक्तियों को जगाना, आदतों को बदलना। ऐच्छिक मांसपेशियों का संचालन हमारे अधीन होता है, किन्तु अनैच्छिक अवयवों के संचालन पर हमारा नियंत्रण नहीं होता। हृदय धड़कता है। रक्त बहता है। पाचन होता है। इन पर हमारा अधिकार नहीं है। हम चाहें तो ऐसा होता है, अन्यथा नहीं, यह नहीं हो सकता। हम चाहें या न चाहें ये सब निरंतर अपना कार्य करते रहते हैं।
योग पद्धति से इन पर कुछ नियंत्रण किया जा सकता है। नियन्त्रण के कुछ सूत्र खोजे गए। हृदय की धड़कन और नाड़ी के संचालन को कुछ समय के लिये रोका जा सकता है। तापमान को घटाया-बढ़ाया जा सकता है। श्वास लंबा या तीव्र लिया जा सकता है और श्वास को एक बार स्थगित भी किया जा सकता है। यह सारा योग के विविध अभ्यासों से साधा जा सकता है। ___ आवेश पर नियंत्रण किया जा सकता है, पर हर कोई नहीं कर सकता,
और अभ्यास के बिना नहीं होता। भय लगता है तो जीवन भर लगता ही रहता है। क्रोध आता है तो जीवन भर आता ही रहता है। अन्यान्य आवेशों की तरंगें उभरती हैं तो जीवन भर उभरती रहती हैं। बालक में भी क्रोध आता है तो साठ बरस का बूढ़ा भी क्रुद्ध होता है। ऐसा नहीं देखा कि बाल्य अवस्था में तो क्रोध आता है और धीरे-धीरे वह कम होकर साठ बरस के बूढ़े में समाप्त हो जाता है। यह अवश्य देखा है कि अवस्था के साथ-साथ आवेग बढ़ते हैं, क्रोध तीव्र और आशु होता है। यह इसलिए कि बूढ़े व्यक्ति का नाड़ीतंत्र कमजोर हो जाता है। नियंत्रण की शक्ति क्षीण हो जाती है और तब बात-बात में क्रोध भभक उठता है। बीस वर्ष के तरुण में धन के प्रति लालसा और आकांक्षा है तो अस्सी बरस के बूढ़े में वह नहीं है या बूढ़ा लोभ मुक्त हो गया है, ऐसा नहीं है। उसमें लोभवृत्ति और अधिक भड़क उठती है। हमने प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि आज का युवक दहेज से घृणा करता है। पर बूढ़ा बाप दहेज की अपनी मांग को सत्यापित करता हुआ उस युवक बेटे को नादान और अनुभवहीन बताता है। युवक कहता है मुझे सुशील लड़की चाहिए। दहेज नहीं। बाप कहता है—'मूर्ख है तू। यही तो अवसर है कुछ बटोरने का! तू चुप रह ।' हमें हंसी आती है। क्या लेना-देना है बूढ़े बाप को। लड़की का साथ निभाना है बेटे को। जीवन की गाड़ी चलानी है बेटे को। बाप बीच में क्यों आता है। श्मशान जाने की तैयारी है, फिर भी लोभ की आग इतनी प्रज्वलित है कि वह बुझती ही नहीं।
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