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________________ क्या आत्म-नियंत्रण जरूरी है? 235 दो राजर्षि मुनि बने। राज्य को छोड़ अन्यत्र प्रव्रजन करने लगे। चलते-चलते वे ऐसे प्रदेश में गए, जहां नमक नहीं होता था। वहां के निवासी सब अलौना खाते थे। एक मुनि ने उस भोजन को सहन कर लिया। दूसरे राजर्षि को वह नहीं रुचा। रोज भूखे रहने की नौबत आ गई। एक दिन एक कोई परदेशी आया और उसने उस राजर्षि को नमक का एक थैला दे दिया। अब राजर्षि प्रतिदिन उसमें से नमक निकालकर भोजन में डालते हैं और भोजन करते हैं। दूसरे राजर्षि ने देखा तब कहा अरे यह क्या? राज्य का मोह क्षण भर में छोड़ दिया और नमक का संचय कर रहे हो? बड़ी विचित्र बात है? आप सोच सकते हैं कि पूरे राज्य के मोह को छोड़ देने वाला क्या नमक जैसी तुच्छ वस्तु के मोह में उलझ जायेगा? यह उदाहरण इसका उत्तर है। प्रश्न वस्तु का नहीं है। प्रश्न है आवेश का। आवेश आदमी को उलझा देता है। दीर्घकालीन कठोर साधना के बिना आत्म-नियंत्रण या आवेश-नियंत्रण नहीं किया जा सकता। प्रतिदिन का अभ्यास अपेक्षित है। ___ इस साधना का पहला सूत्र है प्रेक्षा, देखना। देखना बहुत बड़ी शक्ति है, नियंत्रण है। आप विचारों को देखना प्रारम्भ करें। विचारों को रोकना नहीं है, केवल देखना है। कुछ ही क्षणों में विचारों का प्रवाह रुक जाएगा। उन पर नियंत्रण अपने आप स्थापित हो जाएगा। रोकने का प्रयत्न नहीं किया। बिना प्रयत्न के ही वे रुक गए। श्वास को देखना प्रारंभ करें। श्वास की गति मंद होने लगेगी। श्वास पर नियंत्रण अपने आप स्थापित हो जायेगा। हृदय की धड़कन को एक साथ बंद नहीं किया जा सकता। पर प्रेक्षा के द्वारा उसको मंद किया जा सकता है। तापमान के लिए भी यही बात है। मन पर नियंत्रण की बात अत्यन्त कठिन है। श्वास पर नियन्त्रण करने से मन पर अपने आप नियंत्रण होगा। मन श्वास की सवारी कर चलता है। हमारी आदतों का संबंध अचेतन मन से है. आवेशों का संबंध अन्तर्मन से है, भाव जगत् से है। मस्तिष्क पर नियंत्रण करने से भाव-तंत्र पर नियंत्रण स्थापित हो जाता है। ज्योतिकेन्द्र ओर शांतिकेन्द्र की प्रेक्षा इसका साधन है। ___ श्वास और प्राण दो हैं। श्वास से आगे की शक्ति है प्राण। यह शरीरशास्त्र का नहीं, योगशास्त्र का विषय है। श्वास की क्रिया, बोलने की क्रिया आदि सारी शारीरिक क्रियाएं प्राणशक्ति के आधार पर चलती हैं। सारा जीवन इसी शक्ति से संचालित होता है। प्राण का नियंत्रण आत्म-नियंत्रण का आधार बनता है। विज्ञान इस तथ्य तक पहुंच चुका है कि जब आदमी श्वास लेता है तब पिंगला नाड़ी-तंत्र अर्थात् पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम ( परानुकम्पी) सक्रिय बनता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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