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सोया मन जग जाए
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यह आसक्ति और मोह का निश्चित परिणाम है। मोह और चंचलता युक्त बुद्धि का अनिवार्य परिणाम है पक्षपात । हमें बुरा नहीं मानना है। बुरा मानते हैं तो भ्रान्ति है। जब तक यह भ्रान्ति नहीं टूटेगी, प्रज्ञा का जागरण नहीं होगा । जब तक हमारी चेतना आसक्ति और मूर्च्छा से विमुक्त नहीं होगी, प्रज्ञा नहीं जागेगी ।
सारी एकाग्रता वांछनीय नहीं होती । एकाग्रता अवांछनीय भी होती है । बगुले की एकाग्रता किस काम की? एकाग्रता वोट और नोट गिनने में भी होती है । हमें जानना है कि एकाग्रता कहां हो? आसक्ति और मूर्च्छा - शून्य एकाग्रता प्रशस्य होती है, पवित्र होती है । यदि हमारे सामने चित्तशुद्धि या चेतना को निर्मल बनाने का उद्देश्य नहीं है तो एकाग्रता कामचलाऊ बनकर रह जाएगी, अधिक कारगर नहीं होगी । वह एकाग्रता वांछनीय है जो प्रज्ञा को जगा सके, चित्त और चेतना को पवित्र बना सके ।
निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है, दुःखचक्र से मुक्त होने तथा कार्य की पवित्रता के लिए अनासक्ति का होना जरूरी है । अनासक्ति के लिए यथार्थ - बोध और यथार्थ - बोध के लिए प्रज्ञा का जागरण जरूरी है । प्रज्ञा जागरण के लिए ध्यान जरूरी है।
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