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________________ क्या ध्यान जरूरी है ? 229 अब ये मेरा अभ्यास - सा बन गया है । यह एक डाक्टर की बात है । हम सब इस विधि से लाभान्वित हो सकते हैं। जब सूक्ष्म सत्यों की ओर एकाग्रता बढ़ेगी तो प्रज्ञा जागेगी। जब मन की एकाग्रता और चित्त की निर्मलता बढ़ती है तब सूक्ष्म सत्यों का स्पष्ट अनुभव होने लगता है 1 वैज्ञानिक को भी बहुत एकाग्र होना पड़ता है तभी वह नये-नये अन्वेषण कर पाता है । उसे ध्यानी बनना पड़ता है। ध्यान में गये बिना वह सूक्ष्म सत्य नहीं खोज सकता। उसने उपकरणों का विकास किया है, पर केवल उपकरणों से ही काम नहीं होते। वे तो मात्र साधन हैं, माध्यम हैं । वैज्ञानिक की तन्मयता को वे सहारा दे सकते हैं। मुख्य बात है एकाग्रता । उसे भी ज्ञान की भूमिका से हटकर ध्यान की भूमिका में जाना पड़ता है । विज्ञान ने ऐसे सूक्ष्म सत्यों का पता लगाया है जो ध्यान के लिए भी बहुत उपयोगी हैं। विज्ञान उनके दिशाओं में काम कर रहा है । यह न मानें कि उसने केवल विध्वंस के साधनों की ही खोज की है। उसने अध्यात्म की दिशा में भी महत्वपूर्ण खोजें की हैं। उसकी मस्तिष्क संबंधी खोजें अपूर्व हैं । वैज्ञानिकों ने माना कि श्वास का और मस्तिष्क का गहरा संबंध है । लयबद्ध श्वास से मस्तिष्क में अल्फा तरंगें उत्पन्न होती हैं । वैज्ञानिकों ने इस बात पर मुहर लगा दी कि प्राणी का स्वरचक्र बदलता रहता है और उसके साथ ही साथ व्यक्तित्व भी बदलता है । मूड बदलता है। मूड के बनने-बिगड़ने के पीछे स्वर या श्वास का योग होता है । मस्तिष्क का योग होता है । जिस समय मस्तिष्क संतुलित होता है, स्वर ठीक चलता है तो मूड ठीक होता है । स्वर - विज्ञान भारत की समृद्ध विद्या है । प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इसको आगे बढ़ाया है और आज विज्ञान इसमें नए-नए तथ्य जोड़ रहा है । 1 बुद्धि की अगली भूमिका है प्रज्ञा । प्रज्ञा जागे । सारा संसार इन्द्रिय- चेतना, मन की चेतना और बुद्धि की चेतना में अटका हुआ है । इसे ही वह अंतिम मानता है। वह प्रज्ञा को जगाना चाहता नहीं या जानता नहीं । प्रज्ञा के जागे बिना बुद्धि बहुत काम नहीं देती। निर्णय के लिए अन्तर्दृष्टि या प्रज्ञा आवश्यक होती है । बुद्धि के साथ आसक्ति और मूर्च्छा जुड़ी है। जहां ये दोनों हैं, वहां पक्षपात रहता I है । इसको टाला नहीं जा सकता । पक्षपात चाहे परिवार में हो, समाज में हो या राष्ट्रीय स्तर पर हो, उसके पीछे आसक्ति काम करती है । पुत्र की शिकायत है कि पिता बहुत पक्षपात करते हैं। भाई को शिकायत है कि बड़ा या छोटा भाई पक्षपातपूर्ण व्यवहार करता है । बड़े बेटे को शिकायत है कि मां छोटे के साथ पक्षपात करती है । सर्वत्र पक्षपात ही पक्षपात । पक्षपात होना आश्चर्य नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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