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सोया मन जग जाए
डाला कि आदमी का यथार्थ बोध ही नष्ट हो गया । यथार्थ बोध के नष्ट होने पर आदमी अपने चारों ओर समस्याओं का ताना-बाना बुन लेता है, दुःखों का जाल बिछा लेता है । आदमी यथार्थ को यथार्थ नहीं मानता। शरीर केवल शरीर है। कपड़ा केवल कपड़ा है। भोजन केवल भोजन है। आदमी इन सबको ऐसा कहां मानता है? यदि वह भोजन को केवल भोजन मानता तो स्वादिष्ट होने पर भी अधिक कभी नहीं खाता । उसमें तब स्वादिष्ट - अस्वादिष्ट की बात नहीं होती । स्वादिष्ट - अस्वादिष्ट का तर्क उसी में पैदा होता है जो भोजन को केवल भोजन नहीं मानता, और कुछ मानता है । पदार्थ हमारे लिए केवल पदार्थ नहीं है । यदि पदार्थ पदार्थ होता तो उस नश्वर के प्रति हमारी आसक्ति नहीं जुड़ती । यह सारा काम चंचलता कर रही है । यथार्थता पर आवरण डालती है चंचलता । तब शरीर शरीर मात्र नहीं रहता, जन्म केवल जन्म नहीं है, मृत्यु मृत्यु नहीं है । यदि उसे यथार्थबोध होता तो वह मृत्यु से नहीं डरता और जीने का मोह नहीं करता । यथार्थ यथार्थ होता है । न उनके साथ राग होता है और न मोह, न द्वेष और न घृणा । यथार्थ बोध होने पर दृष्टि के ये सारे दोष मिट जाते हैं ।
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ध्यान यथार्थ की चेतना को जगाने का एक माध्यम है । जैसे-जैसे यथार्थ की चेतना जागेगी, वैसे-वैसे आसक्ति और मूर्च्छा टूटती जाएगी। आसक्ति के कारण मनुष्य कितना मिथ्या अभिमान करता है । दूसरों को कितना धोखा देता है।
पिता ने बच्चे से कहा—ये पीपे पड़े हैं। इन पर लिख दो कि किसमें क्या है। बच्चे ने पीपों पर लिखना प्रारम्भ किया— दाल, पापड़, मिर्च आदि-आदि । जैसे ही चीनी के दो-चार पीपे सामने आये, उसने उन सब पर लिखा 'नमक', 'नमक', 'नमक' । पिता ने कहा- यह क्या ? बच्चा बोला- पिताजी! चींटियों को धोखा देने के लिए चीनी के पीपे पर नमक लिखा है ।
आदमी आसक्ति के कारण धोखा देता है, क्रूर कर्म करता है, क्रूर व्यवहार करता है । आसक्ति और अयथार्थ-बोध होगा तो आसक्ति होगी । अनासक्ति की बात तब तक नहीं सोची जा सकती, जब तक सम्यग्दर्शन न हो जाए । यथार्थ - बोध के लिए ध्यान और यथार्थ तथ्यों की जानकारी जरूरी है सूक्ष्म सत्यों को जानने के लिए। पढ़ने से बुद्धि का विकास हो सकता है, पर प्रज्ञा का विकास नहीं हो सकता। प्रज्ञा के बिना सूक्ष्म सत्य नहीं जाने जा सकते। आदमी स्थूल सत्यों में उलझ जाता है। उसकी स्थूल जानकारी उसे सत्य का दर्शन नहीं होने देती । एक डाक्टर ने कहा- मैं प्रेक्षाध्यान का अभ्यासी हूं । श्वास के ठंडेपन या गरमाहट का अनुभव करता हूं। गहरी एकाग्रता से यह अनुभव होने लगा है । अब जब मैं रोगी को देखता हूं तो मुझे रोग का सूक्ष्मता से ज्ञान हो जाता है।
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