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________________ ३२. क्या आत्म-नियंत्रण जरूरी है? अध्यात्म का महत्वपूर्ण सूत्र है—आत्म-नियंत्रण। धर्म ग्रन्थों में इस पर विशद विचार प्राप्त है। प्रश्न है, आत्म-नियंत्रण क्या है? यह क्यों आवश्यक है? यदि आवश्यक है तो इसकी प्रक्रिया क्या है? आत्म-नियंत्रण का पहला अर्थ है शरीर पर नियंत्रण। आत्मा अमूर्त है। इसके द्वारा केवल अमूर्त, चेतन, अव्यक्त सत्ता का ही ग्रहण नहीं होता, इसके द्वारा शरीर, मन, चेतना के बाहरी और भीतरी सारे तत्त्वों का ग्रहण होता है। इसलिए कहीं आत्मा शब्द का अर्थ शरीर, कहीं मन और कहीं इन्द्रियां हो जाता है। आत्मा शब्द का अर्थ श्वास भी होता है। एक शब्द में कहें तो आत्मा से संबंध रखने वाले तत्त्व आत्मा कहे जाते हैं। ___ आत्मा पर नियंत्रण करने का प्रारंभ शरीर पर नियंत्रण से होता है। शरीर में नाड़ी-संस्थान के दो सिस्टम हैं वोलेंटरी और इनवोलेंटरी- ऐच्छिक और अनैच्छिक। अंगुली हिलती है, हाथ-पैर हिलता है, यह सारी ऐच्छिक नाड़ी-संस्थान से संपन्न कार्य है। हृदय का धड़कना, रक्त का संचरण होना, पाचन संस्थान का कार्य होना यह सारा अनैच्छिक नाड़ी-संस्थान का कार्य है। इन सबके लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता। ऐच्छिक नाड़ी-संस्थान से संचालित कार्यों के लिए प्रयत्न करना होता है। इस संदर्भ में शरीर-नियंत्रण का अर्थ है-इच्छा-चालित प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करना। आत्म-नियंत्रण का दूसरा अर्थ है-मन पर नियंत्रण करना। यह शरीरनियंत्रण के आगे की अवस्था है। मन पर नियंत्रण यानी विचारों पर नियंत्रण। जो समनस्क है, जिसकी मनश्चेतना विकसित है, उसमें विचारों की तरंगें उठती हैं। जागृत अवस्था में विचारों का प्रवाह चलता है तो सुप्त अवस्था में वह बिलकुल अवरुद्ध नहीं हो जाता। सोते समय सचेतन मस्तिष्क सो जाता है, कुछ निष्क्रिय हो जाता है, फिर भी पूर्णरूप से निष्क्रिय नहीं होता, इसलिए विचार का सिलसिला चालू रहता है। कभी स्वप्न आता है, कभी वाक्-तंत्र सक्रिय होता है और आदमी नींद में भी बड़बड़ाने लग जाता है। कभी वह शारीरिक प्रवृत्तियां भी कर लेता है। उसकी सक्रियता चालू रहती है। मन और विचारों पर नियंत्रण करना आत्मा पर नियंत्रण करना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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