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सोया मन जग जाए में था या बिना वर्दी में? वर्दी में होता तो शेर उसे खा नहीं सकता।'
आदमी अपनी मान्यता में उलझ जाता है। यह विचारों का उलझाव बराबर बना रहता है। जब तक व्यक्ति मन्तव्य और धारणा के चक्रव्यूह को तोड़कर सहज-सरल भाव से सत्य का साक्षात्कार नहीं करेगा तब तक विचारों के व्यूह को भी नहीं तोड़ा जा सकेगा। इसलिए विचार के प्रवाह को रोकने के लिए विराग परम आवश्यक तत्त्व है, सत्य का बोध और सत्य का साक्षात्कार बहुत आवश्यक
हम सब दु:ख के चक्र को देखते हैं। दुनिया में बहुत दुःख है। दुःख का उत्पादक है परिग्रह। महावीर ने कहा, जब तक आदमी परिग्रह से मुक्त नहीं होगा तब तक वह दुःख से छुटकारा नहीं पा सकेगा। आदमी के पास विचारों का बड़ा परिग्रह है। वह सोचता है, धन नहीं होगा तो क्या होगा? बुढ़ापे में क्या होगा? लड़की की शादी कैसे कर पाऊंगा। यह श्रृंखला चलती है विचारों का परिग्रह अन्यान्य परिग्रहों को सहारा देता चलता है। तब आदमी मान लेता है कि धन ही जीवन है। वह कहता यह है कि मुझे धर्म और परमात्मा बहुत प्रिय हैं, अध्यात्म मुझे प्रिय है, पर यह बात बाहर के मन से निकलती है। उसके अन्त:करण में प्रिय है परिग्रह और वही उसका धर्म और परमात्मा बन जाता है।
संन्यासी के पास एक सेठ आया। उसके पास अपार संपत्ति थी, पर शांति नहीं थी। वह दु:खी था। उसने संन्यासी से कहा-'महाराज! मैं बहुत दु:खी हूं। ऐसा कोई मंत्र बताएं कि मेरा दु:ख नष्ट हो जाए।' संन्यासी ने कहा सेठजी! पहले मुझे भोजन कराओ। मैं भूखा हूं। फिर मंत्र बताऊंगा। सेठ को बड़ा अजीब-सा लगा। पर वह विवश था। उसने दूध मंगाया। संन्यासी ने कहा- मैं तुम्हारे बर्तन में दूध नहीं पीऊंगा। अपने पात्र में लूंगा। संन्यासी ने अपने थैले में से एक पात्र निकाला, जिसमें सैकड़ों छेद थे। संन्यासी ने कहा इस पात्र में दूध डालो। सेठ ने देखा, बोला—संन्यासीजी! क्या कह रहे हैं ? इस पात्र में दूध डालूंगा तो आप पीएंगे या जमीन पीएगी? इसमें एक बूंद दूध भी नहीं टिक पाएगा। आप क्या कर रहे हैं? आप दूसरा पात्र निकालें, जिसमें छिद्र न हों। संन्यासी ने कहा तुम ठीक कहते हो। यदि मेरे छिद्र वाले पात्र में तुम्हारा दूध नहीं टिकेगा तो तुम्हारे छिद्र वाले मन में मेरा मंत्र कैसे टिक पाएगा? तुम निश्छिद्र मन लाओ, फिर मैं मंत्र दूंगा। ___परिग्रह की भावना ने मन के पात्र में इतने छेद बना डाले हैं कि उसमें अध्यात्म की कोई बात टिकती ही नहीं। आश्चर्य होता है कि मनुष्य इतने
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