________________
225
क्या धार्मिक होना जरूरी है ? ___ समाज विकास के लिए यह परम आवश्यक है कि समाज के घटकों में अहिंसा की चेतना, संयम की चेतना और कष्ट-सहिष्णुता की चेतना जागे। ___ एक भाई ने कहा अहिंसा, संयम आदि की बात ठीक है, पर जब तक धर्म की चेतना नहीं जागती, तब तक कुछ नहीं होता। मैंने कहा-अहिंसक होने का अर्थ है धार्मिक होना, संयमी होने का अर्थ है धार्मिक होना, तपस्वी होने का अर्थ है धार्मिक होना। इनके अलावा धर्म है क्या? अहिंसा, संयम और तपस्या किसी भी भौतिक पदार्थ से प्राप्त नहीं होती। विश्व में ऐसा एक भी पदार्थ नहीं है जो आदमी को अहिंसक, संयमी या तपस्वी बना सके। ये सब धर्म हैं धर्म से निष्पन्न हैं। महावीर ने कहा—'धम्मो मंगल मुक्किट्ठ, अहिंसा सजमो तवो'–१ गर्म सबसे बड़ा मंगल है। वह धर्म, जो निर्विशेषण है। जिसके पीछे कोई विशेषण नहीं लगता। वह धर्म है अहिंसा, संयम और तपस्या। ये तीन हैं धर्म। ___ जो धार्मिक है वही अहिंसक, वही संयमी और वही तपस्वी होता है। इसका अर्थ है कि धर्म की चेतना भोग, पदार्थ, सुविधा से बिलकुल भिन्न है। यह पदार्थ से नहीं, अन्तश्चेतना से प्राप्त होती है, प्रेक्षा का प्रयोग इसलिए है कि भीतर में जो सहज स्रोत बह रहे हैं, उन पर जो आवरण आ गये हैं, उन्हें हटाया जा सके। ध्यान का क्षण ऐसा ही क्षण है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org