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सोया मन जग जाए
सोमिल उधर से गुजरा। उसने मुनि को पहचाना और मन ही मन सोचा, अरे! यह मेरी लड़की को विवाह से पूर्व ही छोड़कर साधु बन गया । मुझे पता तक नहीं चला। अब रही इसकी बात । वह क्रोधाविष्ट हो अनर्थ चिन्तन में लग गया। भयंकर क्रोध। विवेक चेतना लुप्त । उसने इधर-उधर देखा । गीली मिट्टी लाकर मुनि के सिर पर पाल बांधी और एक सद्यस्क जल रहे मुर्दे के अंगार लाकर उस पाल के बीच सिर पर रख दिए । ताप से खोपड़ी जलने लगी। जैसे खदबद-खदबद खीचड़ी सीझती है, वैसे ही राजकुमार का कोमल सिर सीझने लगा। अपार वेदना, पर धैर्य अविचल । मुनि ने सोचा, निर्ममत्व और भेद-विज्ञान का प्रयोग किया। 'यह शरीर मेरा नहीं है । मैं शरीर नहीं हूं। मैं आत्मा हूं। आत्मा शरीर से भिन्न है । कष्ट शरीर को होता है, आत्मा को नहीं ।' वे आत्मा में इतने लीन हो गए कि अन्यर्यात्रा प्रारंभ हो गई । इतनी गहरी अन्यर्यात्रा कि सारी चेतना सुषुम्ना में सिमट गई । वे शरीर से हटकर भीतर चले गए, लीन बन गए।
विज्ञान मानता है कि शरीर में 'इन्डोफिन' नाम का रसायन पैदा होता है । वह पीड़ा को कम कर देता है । वह पीड़ा शामक होता है। पीड़ा की अनुभूति तब होती है जब ज्ञानतंतु मस्तिष्क तक संदेश ले जाते हैं ? जब ज्ञानतंतु बीच में रह जाते हैं तब संदेश मस्तिष्क तक नहीं पहुंचता और तब पीड़ा का अनुभव नहीं होता।
गजसुकुमाल का सिर जल रहा है, पर वे अडिग खड़े हैं। न संयम टूटा और न अहिंसा। न द्वेष जागा और न घृणा जागी । अध्यवसायों की परम निर्मलता के साथ वे आगे बढ़े, केवली हुए और मुक्त हो गए । निर्जीव शरीर लुढ़क कर भूमि पर गिर पड़ा।
अहिंसा सधती है कष्ट - ट - सहिष्णुता से । जो कष्ट सहना नहीं जाना, वह अहिंसक नहीं हो सकता । वह कायर होता है । कायर कभी अहिंसक नहीं हो सकता। लोग कह देते हैं कि अहिंसावादी बुजदिल और कायर होता है । यह झूठ है । अहिंसक कभी कायर नहीं हो सकता । अहिंसक वह होता जो उत्कृष्ट - पराक्रमी हो। सैनिक पराक्रमी नहीं होता । वह मरता जरूर है, पर मरने से घबराता है । यदि वह मरने से नहीं घबराता है तो फिर शस्त्र क्यों रखता है ? दूसरों को क्यों मारता है । वह अपने को बचाने के लिए दूसरों को मारता है 1 यह कायरता का चिह्न है। अहिंसक इतना पराक्रमी होता है कि वह किसी को मारना नहीं चाहता। स्वयं मर जाता है, पर जो कुछ आता है उसे झेलता जाता है । महान् पराक्रम है अहिंसा ।
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